अगवानी पृ-34
संस्थान की गतिविधियाँ
-के. बिजय कुमार
(पावरपॉइंट प्रस्तुति पर आधारित) हिंदी के प्रचार-प्रसार और हिंदी के पठन-पाठन को मानक रूप देने के लिए 19 मार्च, 1960 को तत्कालीन शिक्षा एवं समाज कल्याण मंत्रालय द्वारा 'केंद्रीय हिंदी शिक्षण मंडल' की स्थापना की गई। केंद्रीय हिंदी संस्थान अब केंद्रीय हिंदी शिक्षण मंडल के अंतर्गत आता है। केंद्रीय हिंदी शिक्षण मंडल के अध्यक्ष होते हैं मानव संसाधन विकास मंत्री तथा मंडल के उपाध्यक्ष मंत्री जी द्वारा चुने जाते हैं और संस्थान शिक्षण मंडल के अधीन काम करता है। संस्थान के उद्देश्य हैं- अखिल भारतीय स्तर पर हिंदी शिक्षण में एकरूपता और शिक्षण पद्धति में मानक रूप का होना। इसीलिए यह शिक्षण मंडल बनाया गया था। इस संस्था का रजिस्ट्रेशन लखनऊ में किया गया था। 1 जनवरी, 1963 को मंडल को केंद्रीय हिंदी शिक्षण महाविद्यालय चलाने का दायित्व दिया गया। इस हिंदी शिक्षण महाविद्यालय को 1963 के अक्टूबर महीने में 'केंद्रीय हिंदी संस्थान' का नाम दिया गया। 19 मार्च, 2011 को केंद्रीय हिंदी संस्थान का स्वर्ण जयंती है। अध्यक्ष महोदय और उपाध्यक्ष महोदय की उपस्थिति में और मंत्रालय के मार्गदर्शन में हम इसे मनाएंगे। संस्थान के बारे में यहाँ बैठे अधिकांश लोग जानते ही हैं। संस्थान के केंद्र हैं- दिल्ली, हैदराबाद, गुवाहाटी, शिलांग, मैसूर, दीमापुर, भुवनेश्वर और अहमदाबाद में। हिंदी को एक अखिल भारतीय भाषा के रूप में विकसित करते हुए पाठ्यक्रम तैयार करना, उसे उपलब्ध कराना और उसको संचालित कराना केंद्रीय हिंदी संस्थान का मुख्य कार्य है। विभिन्न स्तर पर हिंदी शिक्षण की गुणवत्ता में सुधार लाने का प्रयास संस्थान अभी कर रहा है। हिंदी शिक्षकों को प्रशिक्षित करना और हिंदी भाषा तथा साहित्य शिक्षण विषय पर अनुसंधान कार्यों को आयोजित करना भी संस्थान के कार्य क्षेत्र में है।
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