आनंद की अनुभूति
केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा भारत की एकमात्र ऐसी संस्था है, जिसके कार्यकलाप एक विशिष्ट स्थान रखते हैं। ऐसी संस्था में 10 अगस्त, 1973 को नियुक्ति मिलने से जिस आनंद की अनुभूति हुई, उसका वर्णन अनिर्वचनीय है। स्पष्ट है कि हम लोगों की नियुक्ति संस्थान की नई योजना लाने वाले तत्कालीन उपाध्यक्ष, सांसद स्वर्गीय मोटूरि सत्यनारायण जी की थी। इस योजना में पूर्वांचल के सरकारी हिंदी अध्यापकों को प्रशिक्षित करना था। तत्कालीन उपाध्यक्ष स्वर्गीय मोटूरि जी के गहन विचारों व चिंतन से हम अहिंदी भाषी अध्यापक ही रखे जाने थे। सिंधी भाषी अध्यापक में मेरा चयन होना एक सुखद अहसास था। नागा, मिजो, असम, मेघालय और मणिपुर के छात्रों को हिंदी पढ़ाना एक चुनौती थी, चुनौती इसलिए कि अधिकांश छात्रों को हिंदी की प्रारंभिक जानकारी भी नहीं थी, वे न तो अंग्रेजी ही जानते थे और न हम उनकी भाषा। क्यों न चुनौतीपूर्ण काम था? गहन पाठ्यक्रम के प्रभारी डॉ. चतुर्भुज सहाय के निर्देशन में तथा समय-समय पर तत्कालीन निदेशक स्वर्गीय डॉ. ब्रजेश्वर वर्मा के कुशल नेतृत्व में यह कार्य सरल बनता गया। जवानी थी, रूचि थी, इतनी बड़ी संस्था का शैक्षिक वर्ग का सदस्य होकर कार्य करना अति आनंददायक व एक पहचान दिलाने वाला था। पूर्वांचल राज्यों में मिजोरम सरकार द्वारा चलाए जा रहे महाविद्यालय का अंतिम प्राचार्य रहा। हिंदी अधिकारी होने के नाते नियमित दौरे पर गाँवों में हिंदी बढ़ावे के कार्य को हिंदी का कार्य देखने वाले संयुक्त निदेशक व संयुक्त सचिव ने सराहा जरूर। यही मेरा पुरस्कार है। इसी तरह से 91 से 93 तक पूर्वांचल के चार राज्यों तथा कुछ समय तक सातों राज्यों का प्रभारी (अब क्षेत्रीय निदेशक) रहा। तत्कालीन उपाध्यक्ष व सांसद डॉ. शंकर दयाल सिंह और तत्कालीन निदेशक (कार्यकारी) ने मुझे जो जोखिम भरा कार्य सौंपा था, उसे मैंने सकुशल पूरा कर दिखाया। डॉ. शंकर दयाल सिंह (अब स्वर्गीय) का वह पत्र आज भी मेरे पास है। जिसमें मेरी रूचि, कुशलता की भूरि-भूरि प्रशंसा है। इस अवधि में केंद्र का एक सौ वाँ पाठ्यक्रम तथा त्रिपुरा राज्य में प्रथम पाठ्यक्रम सम्पन्न करवाया, जो कि अति कठिन कार्य था। यह कदम व श्रीगणेश संस्थान के लिए रेखांकित किए जाने-वाला कार्य था। मैं इस बात को कभी नहीं भुला सकता हूँ कि मेरे दो मित्रों प्रोफेसर डॉ. म. मा. बासुतकर व डॉ. विजय राघव रेड्डी ने इस उपलब्धि के लिए मुझे बधाइयाँ प्रेषित कीं। मैं उन मित्रों का अपने प्रति सच्ची मित्रता के प्रदर्शन के लिए आभारी हूँ। डॉ. रेड्डी जी, जो मुझसे पहले इस राज्य में कोर्स चलाने का भरसक प्रयास कर रहे थे, मेरी सफलता पर वास्तव में खुश थे। | ||||||||||||
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