एक विहंगावलोकन पृ-56
अध्याय-10
विज़न ट्वेन्टी-ट्वेन्टी वन
स्वर्ण जयंती वर्ष : कुछ नए संकल्प हमारा बहुरंगी, बहुभाषी देश! कितने ही सांस्कृतिक परिवेश! तरह-तरह के परिधान, तरह-तरह के देश। सदियों से एक समृद्ध सामासिक संस्कृति का केंद्र बना रहा है, हमारा भारत और हम सब भारतवासी, हमें जोड़ती है हमारी भाषा हिंदी। प्यारी हिंदी। देवनागरी लिपि में लिखी जाने वाली हिंदी। सोचिए, इसकी ताकत क्या है? जिसे कहते हैं हिंदी। सबसे पहले हमें याद रखना होगा कि 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में आज़ादी की चिंगारी का काम इसी हिंदी ने किया था। यहीं से हिंदी ने अपनी राष्ट्रभक्ति की भूमिका को निभाना शुरू किया। औपनिवेशिक साम्राज्यवादी और देसी सामंतवादी शोषण के विरुद्ध लड़ती रही हिंदी। कविता, कहानी, उपन्यासों और आलेखों के ज़रिए। गाँधी जी के सत्याग्रह के ज़रिए। पूरे देश में गूंजते थे जय हिंदी और वंदे मारतम के नारे। यह भी न भूलें कि हम तभी आज़ाद हो पाए, जब हिंदी ने हम सबको एक सूत्र में बांध दिया और इस लंबी सांस्कृतिक यात्रा में हिंदी जनमानस की लाड़ली हो गयी है। हिंदी ने हमें उन्मुक्त हवा और हंसी का हकदार बनाया। आज हिंदी केवल हिंदी वालों की ही नहीं है, जनमानस की भाषा बन चुकी है। हिंदी आज विश्व भाषा है। पूरा संसार हिंदी और इसकी बोलियों के महत्व को पहचान रहा है। कोई प्रांत हो, कोई रंग, कोई वर्ण, कोई धर्म, सबके बीच संवाद की भाषा है हिंदी। संप्रेषण की भाषा है हिंदी। पचास वर्ष पहले, 19 मार्च 1960 को 'केंद्रीय हिंदी शिक्षण मंडल' की स्थापना हुई थी और सन 1963 में इसके अंतर्गत केंद्रीय हिंदी संस्थान स्थापित हुआ। मुख्यालय बना आगरा में। देश में एक-एक करके आठ केंद्र खोले गए। दिल्ली केंद्र 1970 से भारत सरकार के अहिंदी भाषी अधिकरियों को गहन हिंदी शिक्षण के लिए काम कर रहा है।
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