गवेषणा 2011 पृ-89
मीडिया की हिंदी
भारतवर्ष प्राचीन देश है जिसका पूर्व या शास्त्रीय नाम ‘आर्यावर्त’ था। इस आर्यावर्त की भाषा संस्कृत भी और इसके शब्द-भंडार के अनेक कोश थे। और अभी भी हैं। संचार बहुस्तरीय गतिविधि है। जनसंचार की इन सारी दिशाओं में संप्रेषण की सफलता देने का सारी संयोजना भाषा करती है। भाषा के बिना जनसंचार का लक्ष्य पूरा नहीं हो सकता, चाहे माध्यम कुछ भी हो। इसीलिए जनसंचार के सभी संसाधनों के लिए हर युग में किसी न किसी भाषा का उपयोग अनिवार्यत: होता आया है। भाषा में जनसंचार के कार्य को सुगम बनाया है, आकर्षण प्रदान किया है और विस्तार भी दिया है। जनसंचार माध्यमों में हिंदी ने एक ओर हिंदी को न जाने कितने व्यापक भू-भाग तक फैलाया है तो दूसरी ओर हिंदी भाषा की संरचना और प्रयुक्ति में कई करवटें उपस्थित की हैं। संचार-माध्यमों की हिंदी न तो सामान्य बोलचाल की हिंदी है और न सृजनात्मक स्तर पर उपयोग में आने वाली काव्य-भाषा है। वह निजी और सार्वजनिक उपक्रमों में प्रयुक्त होने वाली शुष्क राजभाषा भी नहीं है। संचार माध्यमों की हिंदी अपने माध्यम विशेष के प्रति ईमानदार भाषा है। यही कारण है कि जनसंचार के विभिन्न माध्यमों में भाषा का प्रयोग करते समय प्रयोक्ता को इस बात का ध्यान रखना होता है कि उसे किस माध्यम के लिए भाषिक संप्रेषण का लक्ष्य प्राप्त करना है। निश्चय ही रेडियो की हिंदी और पत्रकारिता की हिंदी में अंतर है। विज्ञापन की हिंदी और पत्रकारिता की हिंदी में अंतर है। सड़कों पर नज़र आने वाले पोस्टरों के विज्ञापन और आकाशवाणी के विज्ञापन में अंतर है। कम्प्यूटर और माईक्रोचिप्स के इस दौर में जनसंचार-माध्यमों की भाषा के रूप में हिंदी ने अपने बहुआयामी सामर्थ्य को विभिन्न-स्तरों पर इंगित किया है। यही कारण है कि भाषिक मौलिकता और प्रयुक्ति के स्तर पर जनसंचार माध्यमों में हिंदी की असीम संभावनाएँ हैं।
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