पास-पड़ोस
विजय नगर कॉलोनी में मेरे मित्र श्री प्रणवीर चौहान रहते थे। उनके पिताश्री ठाकुर उल्फत सिंह चौहान जिला परिषद के चेयरमैन रह चुके थे। मैं समाज विज्ञान संस्थान में अध्यापन का कार्य करता था। वहीं पड़ोस में नावड़ा जी अहिंदी भाषा-भाषियों को हिंदी सिखाने का काम किया करते थे। तब उसको केंद्रीय हिंदी संस्थान कहा जाता था या नहीं, यह मुझे याद नहीं परंतु नावड़ा जी बड़ी लगन से यह कार्य करते थे। एक और नाम जो मुझे याद आ रहा है, वह श्री भूदेव शास्त्री जी का है, जो इस संस्थान से लम्बे समय तक जुड़े रहे। कन्हैयालाल माणिक लाल मुशीं भाषा विज्ञान विद्यापीठ तथा केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा के अग्रणी संस्थान थे, जिनमें प्रोफेसर रमानाथ सहाय की अहम भूमिका थी। दोनों संस्थानों का कार्य क्षेत्र अलग-अलग था। क. मा. मुं. संस्थान पुणे के बाद भाषा विज्ञान का प्रमुख केंद्र था, जहाँ प्रो. विश्वनाथ प्रसाद जैसे विख्यात निदेशक रहे थे। परंतु केंद्रीय हिंदी संस्थान का स्थान हिंदीतर भाषा-भाषियों को हिंदी पढ़ाने का कार्य करने में महत्वपूर्ण था। यहाँ के अध्यापक हिंदीतर राज्यों और क्षेत्रों में हिंदी प्रसार-प्रचार, विद्यालयों में हिंदी पढ़ाने हेतु शिक्षक तैयार करते थे। इस संस्थान में निदेशक के रूप में मेरे आत्मीय, प्रोफेसर ब्रजेश्वर वर्मा लम्बे समय तक रहे। उनका बड़ा बेटा राजा मेरा विद्यार्थी था और बाद में उनकी पुत्री सुश्री रश्मि, जिसने भाषा विज्ञान से एम. ए. किया और डॉ. विश्वजीत के निर्देशन में पी. एच. डी. की थी। मेरे साले श्री अशोक, जो इलाहबाद विश्वविद्यालय में 'एप्लाईड फिजिक्स' पढ़ाते थे, से विवाह हुआ। वह भी एक स्थानीय डिग्री कॉलेज में पढ़ाती हैं। इस प्रकार केंद्रीय हिंदी संस्थान से मेरा जुड़ाव और भी गहरा हो गया था। मुझे भी वहाँ संगोष्ठियों में शामिल होने और भाषण देने के लिए आमंत्रित किया जाता रहा और में इस रिश्ते को महत्वपूर्ण मानता हूँ। केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा एक विशिष्ट स्थान रखता है, जो राष्ट्रभाषा की सेवा कर रहा है। | ||||||||||||
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