समन्वय छात्र पत्रिका-2011 पृ-23
आपातानी की कहानी
यह जनजाति वर्षों से सुबनसिरी जिले में फेले पठार पर रह रही है, जिसे 'जीरो' की घाटी के नाम से भी जाना जाता है। इस पठार में लगभम 26,000 निवासी रहते हैं, जो अरुणाचल की अन्य जनजाति की तुलना में बहुत ही कम हैं। इस छोटी-सी घाटी को सात गाँवों में बाँट दिया गया है, जो इस प्रकार से हैं-
जीरो घाटी में कुल कृषि योग्य क्षेत्र 1058 वर्ग कि.मी. है, जो कुल भूमि का 43 प्रतिशत है। शेष भाग बस्तियों एवं जंगलों से घिरा हुआ है। कृषि-व्यवस्था में अपनाई गई विशिष्ट एवं स्वतन्त्र शैली ने दुनिया का पर्याप्त ध्यान अपनी और आकर्षित किया है। यहाँ के किसान वर्ष में दो बार फसलें उगाने में सफल रहे हैं, खेती में धान की फसल के अलावा मत्स्य-पालन भी किया जाता है। इसके अलावा बाजरा, सोयाबिन, मक्का अदि फसलें भी उगाई जाती हैं। आपातानी जनजाति घाटी में विकसित प्रकृति की सुन्दरतम रचना एवं समुदाय की विशिष्ट संरक्षण तकनीकी के चलते, जीरो घाटी को सन 2006 में यूनेस्को ने 'विश्व संरक्षित स्मारक' के रूप में नामांकित किया था। आपातानी की क्षेत्रीय, भाषाई, अर्थ-व्यवस्था सम्बन्धी विशेषताएँ तथा इनके रीति-रिवाज परम्पराएँ अरुणाचल की अन्य जनजातियों से भिन्न हैं, अपातानी जनजाति धर्म में विश्वास रखती है, वे 'दोन्यी-पोलो' अर्थात सूर्य-चन्द्र को देवता के रूप में पूजते हैं, हालाँकि पिछले कुछ दशकों से ईसाई मत का प्रचार भी रहा है, फिर भी आपातानीयों ने अपनी मूल श्रद्धा को बनाये रखा है। यह जनजाति निशी जनजाति की पड़ोसी है। वर्तमान में यहाँ प्रगति का स्तर अधिक बढ़ रहा है। पिछले दशक से यहाँ की साक्षरता दर भी बढ़ती जा रही है। शिक्षा की आधुनिकतम पद्धतियों का प्रयोग किया जा रहा है। पाठशालाओं तथा विद्यालयों की संख्या में भी वृद्धि हुई है। पाठशालाओं में हिन्दी की पढ़ाई पूर्व-प्राथमिक कक्षाओं से उपलब्ध कराई गई है।अब अरुणाचल में जीवन के आसार बढ़ते हुए दिखाई दे रहे है...
निष्णात
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