जो है मेरे पास वह सब बाँटता चला,
भिखारी हूँ सदियों से ना कोई शरम ना गिला।
टूटे धागों के रिश्ते निभाता चला,
गम को सीने में छुपाए, हँसाता चला।
ऊँचे ख्वाव नहीं, ना कोई मंजिलें,
खंडहर हमराज मेरे कह रहे सिलसिले।
एक बूँद ही चाहो रेगिस्तान में जीने के लिए,
बबूल की सेज ही सही एक पल चैन के लिए।
मैं भूल था गया मुसाफिरों की सच्चाई,
अब तो रास है मुझे हर पल की तन्हाई।
तुम सही या मैं गलत जानता नहीं,
कुछ है दास्तानें कही-अनकही।
मैं खोजता हूँ जो मैं खोया ही नहीं,
मैं माँगता हूँ जो मैं चाहा ही नहीं।
मैं कौन हूँ क्या है वजूद मेरा?
फकीर हूँ यारो कुछ इस कदर फसाना मेरा।