समन्वय छात्र पत्रिका-2012 पृ-17
नमस्ते गंगासीताकांत पट्टनायक
इलाहाबाद के प्रयाग तट पर दिव्या और आकाश एक दूसरे के करीब बैठे हुए, गंगा की जलराशि को निहारते रहे। बीच-बीच में उन दोनों के सौंदर्य उपभोग में बाधा डालती है- 'बदबू'। आकाश कहता है- दिव्या तुम्हारी गंगा मैली हो गई है। तब दिव्या बोल उठती है क्या? गंगा आपकी नहीं है। यह तो सबकी माँ है, पवित्र है, और ...। और क्या, तुम तो जानते हो आकाश आजकल भारत में नारियों का ज्यादा सम्मान है। दिव्या, तुमने तो बड़ा ही सवाल उठा दिया। मैं तो अपने हरिद्वार की 'गंगा' की बात बता रही थी। वहाँ तो गंगा का जल कितना स्निग्ध, शीतल और निर्मल है। लेकिन यहाँ आते-आते मैली हो गई। चलो इस बात से क्या मिलेगा दिव्या। क्यों? फिर घुमा दी न बात। तुम्हें तो नारियों से घृणा है। नहीं तो बेटी होने के भय से आप क्यों नहीं चाहते कि मेरी संतान हो। दिव्या! क्या बक रहे हो। क्या मैं तुम्हें प्यार नहीं करता? चलो जो भी हो कोशिशों के बावजूद भगवान हमारे ऊपर दया नहीं करते। डॉक्टर साहब तो सलाह दे रहे थे, कि धैर्य रखो सब कुछ ठीक हो जायेगा। तुम घबराते क्यों हो। आकाश, देखो तो पनघट में इतनी भींड़ क्यों है? दिव्या, क्यों वहाँ नजर डालती हो, क्या ये शाम का मौसम तुम्हें आनंद नहीं देता। लेकिन मेरा तो दिल कह रहा है कि वहाँ कुछ तो है, चलो तो देखें, आकाश। ठीक है, जान चलो। अरे आकाश, यहाँ तो एक शिशु रो रहा है। ये किसका है? लोग तरह-तरह की बातें कर रहे हैं। कोई कहता है कि किसी वेश्या का होगा, कोई कहता है कि किसी नव युवती का होगा, जिसने समाज के डर से यहाँ तिरस्कार कर दिया होगा, लेकिन दिव्या की नजर तो कहीं और है। वह कहती है आकाश, भगवान ने हमारी सुन ली है। क्यों न उसे हम गोद ले लें। लेकिन दिव्या तुम तो जानती हो कि इसके माँ-बाप के संस्कार क्या होंगे? गंदे खून की बेटी गंदी ही होती है। वह कभी उच्च नहीं बन सकती। यही लड़की हो सकती है हमारे खानदान का नाम मिट्टी में मिला सकती है। दिव्या तुरंत कह उठती है, 'रोशनी भी तो कर सकती है। मैं जानती हूँ लड़की है इसलिए तुम न करती हो। तुम्हारा दिल छोटा हो गया है। मैं तो उसे गोद लूँगी ही। नहीं तो यहाँ जान दे दूँगी।' आकाश इस तरह की बात सुनकर दंग रह जाता है। मन ही मन सोचता है कि क्या? मेरे प्यार में कहीं कोई कमी रह गई। तुरंत बोल उठती है, 'ले-लो, ले-लो, गोद ले-लो।' दिव्या शिशु को गोद में ले लेती है। उसे निहारती रहती है। कह उठती है, "कितनी सुंदर है! कैसी माँ है उसकी? मन में मातृत्व भाव नहीं, प्रेम नहीं।" आकाश क्या सोच रहे हो? बताओ उसका नाम क्या रखें? आकाश थोड़ा सोचकर बोले, गंगा घाट से मिली है चलो उसका नाम 'गंगा' रख दें। धीरे-धीरे जब गंगा बड़ी होती है, तो विद्यालय में पढ़ती है। दिव्या को अब कोई नारी बंध्या तो नहीं कह सकती। दिव्या आकाश को कहती है, देखो मेरी बिटिया रानी कितनी सुंदर है। कक्षा में प्रथम न सही अच्छी तो पढ़ाई है। गाने में तो प्रथम आती है। आकाश कहता है लेकिन आजकल तो पढ़ाई करना जरूरी है दिव्या। मैं तो चाहता हूँ कि उसे मैं एक अच्छी शिक्षिका बनाऊँगा। हाँ, शिक्षक तो वह इतनी पढ़ाई में बन सकती है। अंग्रेज़ी, विज्ञान की न सही, हिंदी शिक्षिका तो बन सकती है। दिन पर दिन बीतते गए। दिव्या चिल्लाते हुए बोली, अजी! सुनते हो, मेरी गंगा द्वितीय श्रेणी में माध्यमिक परीक्षा में पास हो गई है। अरे, सिर्फ बोलते हो, मिठाई क्यों नहीं लाए? मिठाई किस खुशी में? आजकल द्वितीय श्रेणी में पास करने वालों को अच्छा कॉलेज नहीं मिलता और मेरा तो भुवनेश्वर तबादला हो गया है। वहाँ तो अच्छे कॉलेज में दाखिला नहीं मिलेगा। दिव्या रीझती हुई कह उठती है, तुम तो हर समय मेरी बेटी के विरुद्ध ही खड़े हो जाते हो। वह तो कह रही है कि किसी भी कॉलेज में चलेगा। राकेश दूसरे सप्ताह भुवनेश्वर में नौकरी जॉइन करता है। सारे आफिस के लोगों के बच्चे कोई 'रेभेन्सा' कॉलेज में तो कोई 'बि. जे. बी' कॉलेज जैसे नामी गिरामी कॉलेज में पढ़ते हैं। लेकिन आकाश ने गंगा को दो लाख रुपये देकर 'ज्ञान श्री' कॉलेज में पढ़वाया। गंगा अब हिंदी विषय लेकर पढ़ने लगी। पाश्चात्य संस्कृति ने उसको घेर लिया है। छोटी पोशाक पहन रही है। लेकिन बाप को पाश्चात्य से सख्त नफरत है। बाप बीच-बीच में फटकारते भी हैं, लेकिन गंगा के कानों में जूँ तक नहीं रेंगती। दोस्तों को बता रही है मेरा बाप तो बुड्ढा बन गया है। पुराने लोगों का दिल छोटा होता है। कभी-कभी आकाश कार में आते-जाते देखता है कि गंगा दूसरे लड़कों के साथ घूम रही है। दिव्या से वह शिकायत करता है। लेकिन दिव्या के मातृस्नेह के सामने सब कुछ फीका पड़ जाता है। आकाश लाचार होकर मन ही प्रश्न कर उठता है, 'क्या? यह भारतीय नारियों का सम्मान है। अब बाप-बेटी में जंग छिड़ गई है। एक दिन कॉलेज में वार्षिक उत्सव मनाया जा रहा था। इसके लिए प्रिन्सिपल साहब ने अध्यापकों से कहा कि कोई सुंदर लड़की को स्वागत नृत्य के लिए तैयार करो, याद रहे मंत्री महोदय खुश हो जाना चाहिए, नहीं तो हमारे कॉलेज की स्वीकृति रद्द हो सकती है। इस नाच के लिए अभ्यास भी कराओ। अब गंगा का नाम आ गया। अब गंगा शाम को कॉलेज में अभ्यास के लिए जाती रहती है। देर रात में घर लौटती है। जब घर लौटती है, तब दो-चार लड़के हर दिन साथ में रहते हैं। आकाश देखता रहता है। मन ही मन सोचता है, 'क्या करूँ? किसे कहूँ? कोई अपनी बात सुनने को तैयार है क्या? एक थी दिव्या, अब वह भी बदल गई है।'
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