हिंदी विश्व भारती छात्र पत्रिका-2011 पृ-26
म्याँमार देश (बर्मा) के प्रमुख सांस्कृतिक त्यौहारराकेश (म्याँमार)
कक्षा-400
म्याँमार के प्रमुख त्यौहार ये हैं-
तिन्जान् – यह त्यौहार म्याँमार के नववर्षागमन के शुभावसर पर मनाया जाता है। म्याँमार में बर्मी प्रथम महीना, जो कि राष्ट्रीय महीना भी है, टगू में यह त्यौहार लगातार 5 दिनों तक चलता है। तिन्जान् या बर्मी होली 12 अप्रैल से 17 अप्रैल तक होता है। तिन्जान् (बर्मी होली) में लोग बड़े प्रेम से एक दूसरे को पानी से भिगोते हैं और गले मिलकर अपने सारे गिले शिकवे भूल जाते हैं। 17 अप्रैल को सभी लोग सजधज कर पूजा के थाल ले मठ-मन्दिरों में जाते हैं। बड़ी ही श्रद्धाभक्ति के साथ ईश्वर की पूजा करते हैं। धर्म-गुरुओं का उपदेश सुनते हैं और ईश्वर से कामना करते हैं कि नववर्ष प्राणी मात्र के लिए मंगलमय हो। तिन्जान् से पूर्व बच्चों को बौद्ध संस्कारों से संस्कारित करने की प्रथा है। यह कृत्य टगू महीने में होता है। जिसमें प्रत्येक बौद्ध धर्मावलंबी अपने-अपने पुत्रों को (जिनकी आयु 5 वर्ष से 12 वर्ष के बीच होती है) दूल्हे की तरह सजा-सँवार कर, घोड़े पर बिठाकर गाजे-बाजे के साथ बौद्ध मठ में ले जाकर धर्म गुरुओं को सौंप देते हैं। नियमानुसार उन्हें 3 दिन अथवा 1 महीने तक महीने तक भिक्षु बनकर मानव जीवन में उपयोगी संस्कार, संयम-नियम आदि की शिक्षा दी जाती है। इस संस्कार को प्रत्येक बौद्ध धर्मावलंबियों को करना अत्यावश्यक है। न्यौंयेतोंप्वे (बुद्ध जयंती) – बर्मी महीने के अनुसार कसों महीने के पूर्णिमा के दिन (बैसाख पूर्णिमा) बुद्ध जयंती, बोधीसत्व प्राप्ति दिवस और महापरिनिर्वाण के रूप में मनाया जाता है। महात्मा बुद्ध को पीपल वृक्ष के नीचे बोधीसत्व की प्राप्ति हुई थी। अत: इस दिन सुबह प्रत्येक नगर और गाँव में महिलाएँ नए वस्त्र धारण कर नए कलश में जलभर कर जामुन के नव पल्लव तथा अक्षत पुष्पावि से सुशोभित कर जल-कुम्भ को सिर पर रखकर पंक्तिबद्ध बौद्ध बिहार में जाती हैं। धर्म गुरुओं के उपदेश सुनने के बाद पुन: जल-कुम्भ सिर पर रख कर पीपल वृक्ष की परिक्रमा कर उस पर जल चढ़ाती हैं। और भगवान बुद्ध की पूजा करती हैं। ऐसी मान्यता है कि इस दिन वर्षा होना कृषि के लिये शुभ संकेत है। धम्मचक्क (धर्म-चक्र-पवर्तन) – नयौं महीने (आषाढ़ मास) की पूर्णिमा के दिन यह त्यौहार मनाया जाता है। इसी दिन भगवान बुद्ध ने सारनाथ में पंचवर्गीय भिक्षुओं को प्रथम उपदेश दिया था। जो धर्मचक्र प्रवर्तन के नाम से जाने जाते हैं। इस दिन सभी बौद्ध धर्मावलंबी उपवास व्रत रखते हैं। उपदेश सुनने के लिये मठ में जाते हैं। हिन्दू धर्मावलंबी इस दिन को व्यास पूर्णिमा अथवा गुरू पूर्णिमा के रूप में मनाते हैं। इस दिन से चतुर्मासारम्भ होता है। गुरु पूर्णिमा से लगातार चार महीने तक प्रत्येक महीने की अष्टमी, अमावस्या और पूर्णिमा को सभी बौद्ध अनुयायी व्रत रखते हैं। मठों-मन्दिरों में जाकर पूजा करते हैं और धर्मोपदेश सुनते हैं। इसके साथ ही इस महीने में आचार्य पूजा (बर्मी में आसरिया पूजप्वे कहते हैं) जगह-जगह सम्पन्न होती है। वासो लाप्यि – वासो महीने में बौद्ध धर्मावलंबी चन्दा कर उस धन से बौद्ध भिक्षुओं के लिए उपयोगी सामग्री जैसे भोजन पात्र, वस्त्रादि तथा भोजन सहित दान देने का विशेष महत्व है। इस त्यौहार को वासोतिग्ड़ा का प्वे (वस्त्र दान) के नाम से जाना जाता है। दडिभ्युट् (बर्मी दीपावली) – दडिन्चुट् महीने की पूर्णिमा (कुआर पूर्णिमा) की रात्रि में बड़ी सजधज के साथ मनाया जाता है। शाम को मठ–मन्दिरों में श्रद्धालु भक्त धर्मोपदेश सुनते हैं। पूजा-अर्चना कर मठ-मन्दिरों में दीप प्रज्जवलित करते हैं। फिर अपने घर दीप माला सजाते हैं। दीपावली के दिन प्रत्येक नगर और गाँव की शोभा अनोखी हो जाती है। अपने से बड़ों की आशीर्वाद लेते हैं। एक दूसरे को गले मिलते और मिठाईयाँ खिलाते हैं। दीपावली की पूर्व संध्या पर भगवान बुद्ध भव्य रथ यात्रा (शोभा-यात्रा) निकाली जाती है। आतिशबाजियाँ भी होती है। हिन्दू दीपावली – कार्तिक अमावस्या को माता लक्ष्मी की पूजा दीपावली नाम से विश्व विख्यात है। बर्मा में यह त्यौहार बड़े ही हर्षोल्लास के साथ सभी हिन्दू-बौद्ध मिलकर मनाते हैं। धन तेरस से लगातार छठ व्रत तक व्रत और त्यौहारों का दिन होता है दीपावली की पूर्व संध्या पर महालक्ष्मी की रथ-यात्रा (शोभायात्रा) और भगवान बुद्ध की शोभा यात्रा निकाली जाती है। दीपावली के दिन संध्या बेला में घर-घर लक्ष्मी पूजा होती है। दीपमाला सजायी जाती है। धन तेरस भैया दूज तक दीपमालिका होती है। जिसके कारण नगरों और गाँवों की शोभा निराली हो जाती है। दीपावली हिन्दू-बर्मी संस्कृति संबन्ध को दर्शाती है। डसौ। डाई (कठैं) प्वेड – डसौं महीने के पूर्णिमा (कार्तिक) पूर्णिमा के रात्रि में मनाया जाता है। इस त्यौहार के एक सप्ताह पूर्व नवयुवक-युवतियाँ अलग-अलग टोली बनाकर नाचते-गाते और घर-घर डसौंडाईं का संदेश देते हैं और चन्दा संग्रह करते हैं। इस चन्दे से बौद्ध भिक्षुओं के लिये उपयोगी सामान खरीद कर डसौंडाईं फोड के दिन मठ-मन्दिरों में जाकर उसे दान करते हैं। रात को मठ-मन्दिरों सहित गाँवों-नगरों में दीपमाला सजायी जाती है। क्रिसमस – ईसाईयों का यह पवित्र त्यौहार है। यह 25 दिसम्बर को मनाया जाता है। यह त्यौहार बर्मा देश में ईसाई बहुल क्षेत्र में मनाया जाता है। ईद – ईद इस्लाम धर्मावलंबियों का त्यौहार है। रमज़ान के महीने की ईद को म्याँमार में विशेष स्थान प्राप्त है। उस दिन सभी मुसलमान मस्जिद जाते हैं। नमाज़ अदा करते हैं। एक दूसरे के गले मिल अपने सारे गिले-शिकवे भुला देते हैं। एक दूसरे को सेवईं खिलाते हैं। ये सभी त्यौहार म्याँमार के मुख्य त्यौहार हैं। इसके अतिरिक्त अनेक क्षेत्रीय त्यौहार भी हैं।
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