एक छोटा विश्व
केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा ब्रजभूमि का सबसे प्रमुख स्थान है। हमारी प्रिय 'हिंदी' के प्रचार-प्रसार में इसका योगदान महत्वपूर्ण है। आज से करीब 30 साल पहले की बात है, जिस समय मैं संस्थान का विद्यार्थी था, उसी साल (1980) में भगवान टाकिज के पास से इस संस्थान के भवन में "गृह प्रवेश उत्सव" हुआ। हम लोग बहुत उत्साह से भाग ले रहे थे। डॉ. बालगोविन्द मिश्र जी निदेशक थे। बहुत धूमधाम से गृह प्रवेश का कार्य संपन्न हुआ। आज इस संस्थान का नाम सुनते ही आनंद से हमारे शरीर में रोमांच हो जाता है। इस संस्थान ने मुझे परिचय दिया है। सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक आदि हर प्रकार से प्रतिष्ठा मिली है। यहाँ संसार के कोने-कोने से विद्यार्थी आकर पढ़ते हैं। "हम केंद्रीय हिंदी संस्थान के हैं" यह आदर और गर्व से कहते हैं। आज मेरी बेटी "लावण्य भानुरेखा" पढ़ रही थी। मैं और मेरी धर्मपत्नी आए थे। यहाँ मुझे अपने घर जैसा लगा। जितने दिन रहे 'अपने जैसे' रहे। मुझे अतिथि भाव अनुभव नहीं हुआ। इस प्रकार बेटी की बेटी भी पढ़ सकती। अत: यह संस्थान मेरी एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक समर्पित है। मैं इसका आभारी हूँ। संस्थान के लोगों ने मुझे बहुत प्यार दिया है। जहाँ गया वहाँ आदर मिला। मैं कभी नहीं भूल सकता। संस्थान के स्वर्ण जयंती के अवसर पर मैं अपने पुराने गुरुजी को स्मरण करता हूँ। सबसे पहले हमारे जनप्रिय, ज्ञानी, संत प्रोफेसर वी. कृष्णास्वामी अय्यंगार जी का स्मरण करता हूँ। प्रोफेसर बालगोविन्द मिश्र, रमानाथ सहाय, न. वी. राजगोपालन, वी. आर. जगन्नाथन, के. टी. विश्वनाथन, टी. के. नारायण पिल्लै, अमर बहादुर सिंह, ईश्वर सिंह, किशोरी लाल शर्मा, लक्ष्मीनारायण शर्मा, कु. पुष्पा श्रीवास्तव, मनोरमा गुप्ता, गीता शर्मा, रमा सूद, सरोजनी शर्मा इत्यादि कई विद्वान हैं। सभी का नाम लिखना संभव नहीं है। इन सभी को विनम्र प्रणाम करता हूँ। 'केंद्रीय हिंदी संस्थान' एक छोटा विश्व है। यहाँ संसार के कोने-कोने से विद्यार्थी आकर पढ़ते हैं। आगे चलकर एक केंद्रीय विश्वविद्यालय का रूप धारण करने की क्षमता है। आज के निदेशक प्रभारी प्रो. महेन्द्र सिंह राणा का आभार प्रकट करता हूँ, जिन्होंने मुझे यह अवसर दिया है। इसके साथ वर्तमान रजिस्ट्रार डॉ. चंद्रकांत त्रिपाठी महोदय का आभार प्रकट करता हूँ, जो कि स्नेही, दक्ष प्रशासक हैं। रजिस्ट्रार महोदय के सहायक श्रीमान गोरन सिंह का भी आभारी हूँ, जो अपरिचित होने पर भी बहुपरिचित होने जैसा व्यवहार करते हैं। | ||||||||||||
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