एक मुलाकात ने मेरा भाग्य ही बदल डाला
यह घटना सन 1968 की जनवरी की है। मैं अन दिनों 'वैज्ञानिक तकनीकी शब्दावली आयोग' में अनुसंधान सहायक के पद पर काम कर रहा था। आयोग के अनुवाद एजेंसियों के निरीक्षण के सिलसिले में इलाहबाद जाना पड़ा। विज्ञान परिषद, इलाहबाद विश्वविद्यालय, हिंदुस्तानी अकादमी के प्रतिनिधि रेलवे स्टेशन पर लेने आए हुए थे, और सभी ने मेरे ठहरने का प्रबंध भी कर रखा था। हिंदुस्तानी अकादमी के संयोजक पंडित उमा शंकर शुक्ल के पितृतुल्य आग्रह को मैं अस्वीकार न कर सका और मैंने उनका आतिथ्य स्वीकार कर लिया। उन दिनों मैं दिल्ली विश्वविद्यालय से भाषा विज्ञान में एम. लिट. की पढ़ाई कर रहा था।
दूसरे दिन शुक्ल जी मुझे प्रख्यात भाषाविद डॉ. बाबूराम सक्सैना जी से मिलवाने के लिए ले गए। उनका नाम तो बहुत सुना था, उनकी पुस्तक सामान्य भाषा विज्ञान भी पढ़ी थी, किंतु व्यक्तिगत दर्शन करने का सौभाग्य शुक्ल जी के कारण ही मिल गया। फरवरी, 1968 में सक्सैना जी वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग के अध्यक्ष बन गए। उनके कार्यकाल में मैं उनका कृपापात्र बना रहा। अनुसंधान सहायक के मामूली पद पर रहते हुए भी वे मुझे जब दौरे पर भेजते तो अध्यक्ष के प्रतिनिधि के रूप में ही भेजते। उनके प्रतिनिधि के रूप में मैंने निदेशक तथा मंत्री स्तरीय बैठकों में भाग लिया। अगले दिन शुक्ल जी एक अन्य साहित्यिक विभूति के घर ले गए। उनका नाम था- श्री बालकृष्ण राव। उन्होंने भाषा विज्ञान के कई विषयों के बारे में मुझसे चर्चा की। ऐसे सुप्रसिद्ध साहित्यकार के दर्शन करके मैं धन्य हो गया। लौटते समय शुक्ल जी ने मुझे बताया कि राव साहब केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा के अध्यक्ष हैं। बात आई-गई हो गई। मैं शब्दावली आयोग में काम करता रहा। अध्यक्ष के स्नेह-भाजन के कारण कई अधिकारियों की ईर्ष्या एवं कोप भी मुझे सहना पड़ा। जुलाई, 1970 में केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा में लैक्चरर के पद के लिए साक्षात्कार पत्र मिला। मेरे हिसाब से साक्षात्कार सामान्य रहा। बहुत सरल से प्रश्न पूछे गए थे, इसी का आक्रोश था। | ||||||||||||
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