अध्याय-5
अनुसंधान कार्य
प्रस्तावना
संस्थान की स्थापना के समय से ही संस्थान में हिंदी भाषा और साहित्य, हिंदी शिक्षण और अधिगम तथा उसके लिए आवश्यक विभिन्न प्रकार के शिक्षण कार्यक्रमों के लिए विभिन्न प्रकार के पाठ्यक्रमों और परीक्षण मूल्याकंन के कार्यक्रमों आदि के क्षेत्रों मे अनुसंधान की आवश्यकता का अनुभव किया जा रहा है, क्योंकि संस्थान के मैमोरण्डम ऑफ एसोसिएशन में ही संस्थान की स्थापना के उद्देश्यों में हिंदी शिक्षण-प्रशिक्षण के साथ मूलभूत और अनुप्रयुक्त अनुसंधान की आवश्यकता पर बल दिया गया है, इसीलिए संस्थान ने अपने पंजीकरण के तत्काल बाद 1961 में जो पहली संगोष्ठी आयोजित की थी, उसका विषय था 'हिंदीत्तर भाषी प्रदेशों में हिंदी सीखने की समस्याएं'। 1961 के निष्णात ने जिन छात्रों के विषयों पर लघु शोध प्रबंध लिखे थे, उनके निम्नलिखित विषय थे-
- बंग्ला भाषा-भाषी को हिंदी सिखाने की पद्धति
- भारत के अहिंदी भाषियों को हिंदी सिखाने की सर्वोंत्तम पद्धति
- हिंदी और मलयालम की क्रियाओं का तुलनात्मक अध्ययन
- भारतेंदु और वीरेशलिंगम्पतुलु
- मलयालम भाषा-भाषियों को हिंदी सिखाने की पद्धति
- केरल, मद्रास, आंध्र और मैसूर के हाईस्कूल की हिंदी पाठ्यपुस्तकों की आलोचना एवं संशोधन
यहाँ इसका उल्लेख भी किया जा सकता है कि संस्थान ने अपने छात्राध्यापकों के अनुसंधान कार्यों को शीघ्र प्रकाशित करने के लिए गवेषणा नाम से एक अर्धवार्षिक पत्रिका का प्रकाशन किया था, जिससे न केवल शोधार्थियों को प्रोत्साहन मिलता था, अपितु भाषा और साहित्य के क्षेत्र में कार्य करने वाले अन्य विद्वानों और शोधात्रों को प्रेरणा भी प्राप्त होती थी।
संस्थान में जिस प्रकार के अनुसंधान, कार्य हुए हैं, उन्हें मूलत: दो वर्गों में विभक्त कर सकते हैं-
- संस्थान की अनुसंधान योजनाएँ
- अध्यापकों और छात्रों द्वारा किए/करवाए गए लघु शोध प्रबंध।
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केंद्रीय हिंदी संस्थान
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स्वर्ण जयंती 2011
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