एक विहंगावलोकन पृ-41
अध्याय-6
संस्थान प्रकाशन
संस्थान का एक प्रमुख कार्य हिंदी भाषा शिक्षण-प्रशिक्षण से संबंधित सामग्री को प्रकाशित करना भी है। संस्थान द्वारा भाषा शिक्षण-विशेषकर द्वितीय भाषा के रूप में हिंदी शिक्षण और तत्संबंधी अनुसंधान के क्षेत्र में किए गए कार्यों को देश और विदेश के शिक्षण-प्रशिक्षण और अनुसंधान जगत के सम्मुख लाने के लिए प्रकाशन किया जाना अवश्यक समझा गया। संस्थान प्रकाशन योग्य सामग्री निम्नलिखित स्रोतों से प्राप्त करता है-
सन 1963 के पश्चात चार अनुसंधान सहायकों के पद सर्जित हुए थे। अनुसंधान सहायकों की नियुक्ति के पश्चात संस्थान में हिंदी शिक्षण-प्रशिक्षण से संबंधित आधारभूत अनुसंधान कार्य शुरू हुआ। साथ ही तत्कालीन निदेशक के प्रोत्साहन से अध्यापकों को भी भाषा प्राविधियों के विकास, हिंदी और अन्य भाषाओं के साथ तुलनात्मक और व्यतिरेकी अध्ययन इत्यादि की शीघ्र परियाजनाएँ सौंपी गईं। निष्णात पाठ्यक्रम के छात्रों से उपयोगी विषयों पर लघु शोध प्रबंध लिखवाए गए। सन 1965-66 तक कई परियाजनाएँ सौंपी गईं। उनके विस्तृत प्रसार के लिए प्रकाशित कराना आवश्यक हो गया। संस्थान ने उन्हें प्रकाशित करने का कार्य प्रारंभ किया। 1969-70 तक 10 पुस्तकें प्रकाशित हो गई थीं। इसके उपरान्त भी काफी सामग्री साइक्लोस्टाइल्ड रूप में ही प्रयोग मे आती रही। सन 1970 के पश्चात संस्थान के दिल्ली परिसर स्थापित होने के पश्चात कई नए पाठ्यक्रम चलने लगे। उन पाठ्यक्रमों के पाठ्य-विवरण के साथ उनकी शिक्षण सामग्री और उनसे संबंधित पुस्तकें भी संस्थान में तैयार की गईं। पूर्वोंत्तर राज्यों- नागालैण्ड, मिज़ोरम, मेघालय, मणिपुर, आदि के शिक्षा विभागों के अनुरोध पर उनके हिंदी पढ़ने वाले छात्रों के लिए पाठ्य पुस्तकें और शिक्षण सामग्री, व्याकरण, शब्द कोश इत्यादि संस्थान में तैयार किए गए। प्रकाशन योग्य सामग्री की प्रचुरता के कारण संस्थान में सन 1978 में प्रकाशन विभाग की स्थापना की गयी और उसके लिए प्रकाशन प्रबंध और अन्य स्टॉफ की नियुक्ति की गयी। स्वतंत्र प्रशासन विभाग के बनने के बाद अब तक 150 पुस्तकों का प्रकाशन हो चुका है। गवेषणा शोध पत्रिका एव समन्वय छात्र-पत्रिका का नियमित प्रकाशन हो रहा है।
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