कम्प्यूटर-युग
संस्थान में 1982 में मेरा चयन प्रोफेसर के पद पर हुआ था। तब मैं राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद के राष्ट्रीय शिक्षा संस्थान के समाज विज्ञान और मानविकी शिक्षा विभाग की भाषा अनुसंधान प्रकोष्ठ में रीडर के पद पर कार्य कर रहा था, परंतु मैं संस्थान के क्रिया कलापों से पूर्व परिचित ही नहीं, अपितु 1964-65 से उसके अनेक शैक्षिक कार्यक्रमों से जुड़ा रहा हूँ। अत: मुझे संस्थान में प्रोफेसर के रूप में प्रवेश करते समय किसी भी प्रकार का संकोच या भय नहीं था। संयोग से मैंने संस्थान के दिल्ली केंद्र में कार्यभार ग्रहण किया था, उस समय मेरे पुरातन मित्र और सहकर्मी प्रो. वी. रा. जगन्नाथन केंद्र के क्षेत्रीय निदेशक थे, मुझे उनके साथ काम करने में विशेष प्रसन्नता इसलिए हुई थी कि मैं केंद्र की प्रशासनिक जिम्मेदारियों से मुक्त था। केंद्र के विदेशी छात्रों के पाठ्यक्रमों और सांयकालीन पाठ्यक्रमों में शिक्षण कार्य कर रहा था। उन्हीं दिनों मैंने भारत में बहुभाषिकता के संदर्भ में हिंदी अनुवाद की समस्याओं पर एक संगोष्ठी का आयोजन भी किया था, जिसमें पढ़े गए सभी प्रपत्र बाद में संस्थान की ओर से पुस्तक के रूप में प्रकाशति भी हुए। परंतु कुछ ही समय बाद प्रो. जगन्नाथन जी का स्थानातंरण हैदराबाद केंद्र में कर दिया गया और मुझे दिल्ली केंद्र का क्षेत्रीय निदेशक बना दिया गया। दिल्ली केंद्र के क्षेत्रीय निदेशक के रूप में मैंने सर्वप्रथम केंद्र की प्रशासनिक व्यवस्था में परिवर्तन किए और रा. शै. अ. प्र. परिषद (एन. सी. ई. आर. टी) के अनुभवों के परिप्रेक्ष्य में विदेशी भाषा के रूप में हिंदी शिक्षण के पाठ्यक्रमों और सांयकालीन पाठ्यक्रमों पर पुर्नविचार कर उन्हें नया रूप प्रदान किया, जो लगभग उसी रूप में आज भी चल रहें हैं। | ||||||||||||
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