व्याकरण-विचार
विद्रूपित होती हिंदी वर्तनी
- लक्ष्मी नारायण शर्मा
मिजोउरम हिंन्दी-प्रशिक्षण संस्थान, आइजोल के एक स्वागत-समारोह (1978 ई0) में वहाँ एक शिक्षाधिकारी ने प्रसंगश: लेखक से कहा - 'हिंदी तो भूतों की भाषा है।' लेखक के आग्रह पर उन्होंने अपनी बात को अंग्रेजी मे स्पष्ट करते हुए कहा कि हिन्दी को उस लिपि में लिखना और जाँचना बहुत जटिल कार्य है।' बाद के कई वर्षों तक लेखक केंद्रीय हिंदी संस्थान के विभिन्न प्रकार के कार्यों में व्यस्त रहा। आजकल हिन्दी भाषी राज्यों में प्रकाशित अनेक सामाचार पत्रों-पत्रिकाओं तथा हिंदी में लिखी पुस्तकों को विद्रूपित हिन्दी-वर्तनी से पटा देखकर उन शिक्षाधिकारी के साथ हुए संक्षिप्त वार्तालाप स्मृति ने इस सम्बन्ध में लेखनी उठाने के लिए उत्प्रेरित कर दिया। आज कल वे विद्रूपित हिन्दी-वर्तनी से युक्त मुद्रित तथा लिखित सामग्री को देख कर हार्दिक दु:ख होता है। टी.वी., कम्प्यूटर, मोबाइल तथा अन्तरिक्ष-यान के इस उन्नत युग में भी हिन्दी-वर्तनी की इतनी अधिक विद्रूपित दशा देखकर हिन्दी के मठाधीशों की सोच पर तरस के साथ-साथ क्षोभ भी होता है। इस विद्रूपण के पीछे छिपे आन्तरिक तथा बाह्रय कारणों पर इस लेख में प्रकाश डालने का समयोचित आवश्यक प्रयास किया जा रहा है। आशा है कि हिंदी के शिक्षण-प्रशिक्षण से जुड़ी उच्च स्तरीय संस्थाऍँ इस विषय पर गहन चिन्तन-मनन करते हुए आवश्यक कदम उठाएँगी।
भूमिका - केंद्रीय हिंदी निदेशालय, शिक्षा तथा संस्कृति मन्त्रालय, भारत सरकार ने फरवरी, 1983 ई0 में 30 पृष्ठों की एक पुस्तिका 'देवनागरी लिपी तथा हिन्दी वर्तनी का मानीकरण' प्रकाशित की थी इस पुस्तिका की प्रस्तावना में तत्कालीन निदेशक ने इस निर्माण तथा प्रकाशन की आवश्यकता के बारे में अपने विचार व्यक्त किए हैं। उनके अनुसार भारत के संविधान में हिंदी को संघ की राजभाषा के रूप में स्वीकार किया गया है। राजभाषा के रूप में प्रतिष्ठित होने पर हिंदी में लिपी, वर्तनी तथा अंकों के स्वरूप आदि विषयों में एकरूपता लाने के लिए शिक्षा मन्त्रालय ने विभिन्न स्तरों पर प्रयास किया। 1966 ई0 शिक्षा मन्त्रालय ने मानक देवनागरी वर्णमाला प्रकाशित की। वर्ण-मानकता के साथ ही हिंदी वर्तनी की विविधता की ओर भी सरकार ने ध्यान दिया। सन् 1967 ई0 में हिन्दी वर्तनी का माननीकरण पुस्तिका प्रकाशित की गई थी।
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