गवेषणा 2011 पृ-151
स्थाननाम और संबंधित शास्त्र
नामों का अध्ययन भाषाविज्ञान की एक प्रमुख शाखा नामविज्ञान (Toponomy) के अन्तर्गत होता है। पहले कुछ भाषातात्विकों की धारणा थी कि व्यक्तिवाचक नामों का एक भिन्न वर्ग है और ये भाषा की सीमा के बाहर हैं। परन्तु ऐसा नहीं है। स्थाननाम भाषा के ही अंग है। इन स्थाननामों के अन्तर्गत अनेक प्रकार के नाम शब्द आते हैं। वास्तव मे नाना नामों द्वारा भाषाविज्ञान के अनेक महत्वपूर्ण सिद्घान्त प्रकाश में आते है, यहाँ तक कि भाषाविज्ञान की कोई भी शाखा ऐसी नहीं है जिससे प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप में नामों का कोई सम्बन्ध न हो। इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता है कि इन नामों से भाषाविज्ञान के ऐसे तत्व प्रकाश में आते हैं जिनका प्रयोग अन्यत्र दुर्लभ है। स्थाननाम विज्ञान के अध्ययन के अन्तर्गत भौगोलिक नामों का अध्ययन किया जाता है। मानव-स्वभाव नवीनता का प्रेमी है। हर समय वह नवीनता खोजना और देखना चाहता है। नामकरण के मूल में निहित प्रधान भावना भिन्न व्यक्तियों या स्थानों के अन्तर को बनाये रखना है। वास्तव में यदि यह प्रचलन उठ जाए कि प्रत्येक नये या अलग स्थान को भिन्न नाम दिया जाए और प्रत्येक व्यक्ति का नितान्त अपना एक भिन्न नाम हो तो, भ्रम और संशय की मात्रा बढ़ जोयेगी। इस सम्बन्ध में एक प्रश्न यह भी उठ सकता है कि कई व्यक्तियों का एक ही नाम होता है और भिन्न-भिन्न शहरों में एक ही स्थाननाम: प्राय: सुनने को मिलता है। उदाहरण के लिए 'चौक' को लिया जा सकता है। यहाँ यह बात विशेष ध्यान देने योग्य है कि नामों के साथ 'सन्दर्भ' का घनिष्ठ सम्बन्ध है। किसी भी भाषा और बोली का शब्द-सामर्थ्य इतना अधिक हो सकना सम्भव नहीं है कि उसके सम्पूर्ण क्षेत्र के व्यक्ति और स्थानों को एक भिन्न नाम दिया जा सके। इसी कारण शब्दों के कुछ हेर-फेर तथा भिन्न समायोजन से काम चलाया जाता है। यदि यह सोच लिया जाए कि किसी भी नाम की पुनरावृत्ति न हो तो वास्तव में यह असम्भव नहीं तो दुष्कर कार्य अवश्य प्रतीत होगा।
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