साहित्य-चिंतन
काव्य-भाषा में अस्मिता की खोज
(हिंदी-तेलुगु स्वच्छंदतावादी कवियों के विशेष संदर्भ में)
- आई.एन.चंद्रशेखर रेड्डी
कविता सूक्ष्म शरीरी होती है। कविता मे कवि भाषा की किफायती से भाव सम्राज्य की स्थापना करता है। इसमें कवि के लिए कल्पना एक साधन है तो भाषा भी एक विशिष्ठ उपकरण है। भाषा कवि की अभिव्यक्ति-कुशलता का प्रभावी उपकरण भी है। कवि का संबंध पाठक से इसी भाषा पर आधारित होता है। कवि-भावों एवं विचारों की संप्रेषणीयता का सही एवं सक्षम उपकरण भी भाषा है। भाषा–संपदा कवि–प्रतिभा की पुश्तैनी संपदा है। काव्य भाषा अपने आप में संश्लिष्ट, संक्षिप्त एंव सौंदर्यमूलक होती है। उसे समझे बिना उसके स्वरूप से परिचय हुए बिना कविता को समझना असंभव है। कवि कविता में विशिष्ट भाषा प्रयोग द्वारा सांस्कृतिक अस्मिता की तलाश करता ही है और उसके अतिरिक्त अनजाने में ही सही, भाषायी अस्मिता की खोज भी करता है। जिससे कवियों के द्वारा प्रयुक्त भाषा की उन्नति होती है। उसमे सरल संप्रेषणीयता के लिए कवि अभिव्यक्ति के लिए आवश्यक समृद्घि आती है। हिंदी और तेलुगु भाषाओं को परखने से आज उनमें जो समृद्घि दिखाई देती है वह पूर्व युगों के कवियों की अथक कोशिशों का परिणाम ही मान लेना उचित है। खासकर इस दिशा में हिंदी और तेलुगु के स्वच्छंदतावादी कवियों का विशेष प्रयास रहा है।
हिंदी और तेलुगु में लगभग एक ही समय स्वच्छंवादी कविता का उदय हुआ है। दोनों भाषाओं में इस आंदोलन का केंद्र एक ही रहा है। वह है यूरोपीय देशों में विकसित रोंमांटिसिज्म या काल्पनिकतावाद। काल्पनिकतावाद से प्रेरित काल्पनिक कविता से प्रभावित हिंदी और तेलुगु के स्वच्छंदतावादी कवियों ने इस बात को प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से स्वीकारा है। अंग्रेजी काल्पनिक कविता जितना अपने युगीन पृष्ठभूमि से निकट संबंध रखती है, उतनी हिंदी-तेलुगु स्वच्छंदतावादी कविता अपनी पृष्ठभूमि से नहीं है।
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