गवेषणा 2011 पृ-92
संपर्क भाषा के रूप में हिंदी की भूमिका
संपर्क-भाषा : परिभाषा एवं स्वरूप :
संपर्क-भाषा को परिभाषित करते हुए डॉ. दंगल झाल्टे ने अपनी पुस्तक ‘प्रयोजनमूलक हिंदी : सिद्धांत और प्रयोग’ में लिखा है कि "अनेक भाषाओं की उपस्थिति के कारण जिस सुविधाजनक विशिष्ट-भाषा के माध्यम से व्यक्ति-व्यक्ति, राज्य-राज्य, राज्य-केंद्र तथा देश-विदेश के बीच संपर्क स्थापित किया जाता है, उसे संपर्क-भाषा (Contact of Inter Language) की संज्ञा दी जाती है।" (पृ. 53)। इसी प्रकार डॉ. पूरनचंद टंडन ने ने अपनी पुस्तक ‘आजीविका साधक हिंदी’ में संपर्क-भाषा के रूप में हिंदी पर विचार करते हुए लिखा है कि ‘‘संपर्क–भाषा से तात्पर्य उस भाषा रूप से है, जो समाज के विभिन्न वर्गों या निवासियों के बीच संपर्क के काम आती है। इस दृष्टि से भिन्न–भिन्न बोली बोलने वाले अनेक वर्गों के बीच हिंदी एक संपर्क–भाषा है और अन्य कई भारतीय क्षेत्रों में भिन्न-भिन्न भाषाएँ बोलने वालों के बीच भी संपर्क-भाषा है।" (पृ. 151)
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