जब पढ़ने आया
मुझे यह जानकर अत्यंत हर्ष हो रहा है कि आगरा का केंद्रीय हिंदी संस्थान अपनी पचासवीं वर्ष-गाँठ मना हरा है। इस स्वर्णमय अवसर पर इस विराट संस्थान तथा इसकी सेवा में निरत सभी हिंदी प्रेमियों को मैं अपनी हार्दिक शुभकामनाएँ प्रकट करना चाहूँगा।
जहाँ तक संस्थान से मेरा अनुभव है, वह एक चलचित्र जैसा मेरी स्मृति से निकलता आ रहा है। केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा के विदेशी पाठ्यक्रम का श्रीगणेश सन 1991 में हुआ था, तब मैं श्रीलंका के कॅलणिय विश्वविद्यालय का छात्र था। भारत सरकार के द्वारा प्राप्त छात्रवृत्ति के फलस्वरूप मुझे संस्थान के प्रथम विदेशी पाठ्यक्रम में प्रवेश पाने का सौभाग्य मिला। उस समय संस्थान के निदेशक डॉ. बालगोविन्द मिश्र थे और विदेशी पाठ्यक्रम के प्रभारी डॉ. अमर बहादुर सिंह थे। कुछ दिनों बाद मिश्र जी की सेवानिवृत्ति हो गयी। डॉ. अमर बहादुर सिंह जी निदेशक बने और पिल्ले जी प्रभारी। श्रीलंका से मेरे साथ और एक बौद्ध भिक्षु भी थे और दुनिया के करीब दस-पंद्रह देशों से कई विद्यार्थी हिंदी के शिक्षण के लिए संस्थान आ चुके थे। मेरी पढ़ाई तीन सौ कक्षा में हुई थी। उसमें करीब आठ विदेशी छात्र-छात्राएँ थे। तीन सौ कक्षा के पाठ्यक्रम के अनुसार हमें उच्चस्तरीय मौखिक कौशल, लेखन कौशल, प्रकार्यात्मक व्याकरण, पाठावली, हिंदी साहित्य आदि का अध्ययन करना था। मुझे यह बात आज भी याद है कि हिंदी व्याकरण डॉ. अरविंद कुलश्रेष्ठ पढ़ाते थे और पाठावली पांडेय जी। श्रीमती ज्योत्सना रघुवंशी जी हिंदी साहित्य की कक्षा ले रही थीं और मधुमा जी मौखिक कौशल की कक्षा। हिंदी लेखन का अध्ययन हमने रावत जी के अधीन किया था। विनम्रता के साथ कहना चाहता हूँ कि ये सारे गुरु-जन हमें बड़े उत्साह, स्नेह और आदर के साथ पढ़ाते थे। हमें हिंदी के जानकार बनाना उन्हीं का एक लक्ष्य था और उन्होंने उसका अथक प्रयास किया। उनके पढ़ाने का ढंग भी बहुत विलक्षण था। इस अवसर पर इन सब गुरु-जनों का मैं आभारी हूँ और उनके चरण कमलों पर नत-मस्तक हो जाना अपना पुनीत कर्तव्य समझता हूँ। उल्लेखनीय बात यह है कि कुलश्रेष्ठ जी तथा ज्योत्सना जी के साथ मेरा संबंध विशेष था। यह इसलिए है कि पाठ्यक्रम के अलावा उत्तर भारतीय संस्कृति और वहाँ के लोक साहित्य की जानकारी प्राप्त करने के लिए उन्होंने मुझे प्रशंसनीय सहयोग दिया था। | ||||||||||||
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