जापान में संस्थान
केंद्रीय हिंदी संस्थान विश्व भर में हिंदी शिक्षण के क्षेत्र में भारत के एक विशिष्ट संस्थान के रूप में जाना जाता है। आज विश्व के अनेक विश्वविद्यालयों में कार्यरत विदेशी हिंदी अध्यापकों का संबंध किसी न किसी रूप में इस संस्थान के साथ अवश्य रहा है। भारत सरकार द्वारा प्रदत्त विभिन्न छात्रवृत्तियाँ पाकर हिंदी का शिक्षण पाने वाले अधिकांश हिंदी प्रेमी छात्र यहीं आकर शिक्षा प्राप्त करते हैं और अपने-अपने देशों में लौटकर वहाँ हिंदी के प्रचार-प्रसार के कार्य से जुड़ जाते हैं। इस तरह यह संस्थान हिंदी के संदर्भ में अपनी एक वैश्विक पहचान रखता है। सन 1976 के आस-पास जब मेरे एक अन्य सहकर्मी मित्र डॉ. रवि प्रकाश गुप्त (वर्तमान में दिल्ली केंद्र के क्षेत्रीय निदेशक) संस्थान में स्थायी नियुक्ति पर आ गए तो संस्थान से एक नए तरह का जीवंत सम्पर्क हो गया और अवाजाही बढ़ गयी तथा कई बार विभिन्न अधिवेशनों एवं कार्यशालाओं में भी भाग लेने का अवसर मिलता रहा। सन 1993-1994 के शैक्षिक सत्र में, मैं स्वयं अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान डिप्लोमा का छात्र बनकर संस्थान में पढ़ने लगा। उस दौरान डॉ. सूरजभान सिंह, डॉ, वी. रा. जगन्नाथन, श्रीशचंद्र जैसवाल, डॉ. महेन्द्र सिंह राणा, डॉ. प्रमोद कुमार आदि से भी परिचय हुआ। समय-समय पर शैक्षणिक एवं साहित्यिक सहयोग के कार्यक्रम भी बनते रहते थे। सन 1988-1992 के बीच में ट्रिनीडाड एण्ड टोबैगो में एक राजनयिक के रूप में प्रतिनियुक्ति पर गया था और उस देश में हिंदी भाषा शिक्षण के प्रसार के लिए युनिवर्सिटी ऑफ द वेस्टइंडीज में एक हिंदी कोर्स का आंरभ किया। उस दौरान ट्रिनीडाड के अनेक विद्यार्थियों को केंद्रीय हिंदी संस्थान में हिंदी पढ़ने के लिए भेजा ताकि प्रवासी भारतीयों की इस देश की नयी पीढ़ी हिंदी भाषा के जीवंत संसार से जुड़ सके। उनमें से कई विद्यार्थी आज ट्रिनीडाड में हिंदी शिक्षण का कार्य कर रहे हैं। | ||||||||||||
|