दूसरा आँगन
सन 1962 में गवर्नमेन्ट ऑफ इंडिया, मिनिस्ट्री ऑफ एजुकेशन के द्वारा मान्यता प्राप्त गुजरात विद्यापीठ के हिंदी शिक्षक महाविद्यालय का प्रारंभ हुआ। उस समय केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा की स्थापना मोटूरि सत्यनारायण एवं अहिंदी प्रांतों के हिंदी प्रेमी व्यक्तियों के समर्थन से केंद्र सरकार ने एक विशिष्ट संस्था के रूप में की।
मुझे उस समय से संस्थान से गहरा लगाव रहा है। बाद में मैं पुन: सन 1976 में हिंदी शिक्षा विशारद (B-Ed Hindi) पाठ्यक्रम में पढ़ता था, तब मैं वाद-विवाद प्रतियोगिता के प्रतिभागी के रूप में डॉ. मालती दुबे के साथ केंद्रीय हिंदी संस्थान (दयालबाग), आगरा आया था। उस समय प्रतियोगिता में वाद-विवाद का विषय था- "इस सदन की राय है कि देश से गरीबी दूर करने के लिए व्यक्तिगत संपत्ति का अधिकार नष्ट कर देना चाहिए?" मेरे साथ हमारे महाविद्यालय की प्रशिक्षार्थी इंदिरा करनानी भी थीं। हम दोनों को भाषा का पुरस्कार प्राप्त हुआ था। मुझे गुजराती भाषी वक्ता और इंदिरा करनानी को सिंधी भाषी वक्ता का पुरस्कार मिला था। तब प्रथम नंबर प्राप्त करने के लिए एक चलबैजन्ती भी दी जाती थी। इस प्रतियोगिता के समय देश में आपातकाल लागू था। मैंने अपने विचार विपक्ष में निडरता से पेश किये थे। केंद्रीय हिंदी संस्थान के डायरेक्टर डॉ. बालगोविन्द मिश्र थे उस समय, जब देश में विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार थी। गुजरात विद्यापीठ में गुजरात के हिंदी शिक्षकों के लिए केंद्रीय हिंदी संस्थान के द्वारा 15 दिवसीय तालीम का आयोजन किया गया था। उसके समापन समारोह में तत्कालीन राज्यस्तर के शिक्षामंत्री श्री मेहता उपस्थित रहे थे। डॉ. बालगोविन्द मिश्र, प्रो. रामलाल परीख कुलनायक आदि अतिथि विशेष के रूप में उपस्थित रहे थे। सम्मानीय शिक्षामंत्री मेहता जी ने कार्यक्रम की सराहना की और गुजरात में हिंदी के प्रसार-प्रचार में केंद्रीय हिंदी संस्थान के योगदान का अभिनंदन किया था। प्रतिवर्ष संवर्धनात्मक कार्यक्रम में छात्र-छात्राओं के साथ आने का मौका मिलता रहा। धीरे-धीरे संस्थान का विकास हो रहा था। एक सुंदर और पूर्ण पुस्तकालय 'गांधी भवन' बन गया। हिंदी की पत्र-पत्रिकाएँ, अखबार, कोश विभाग आदि का लाभ मुझे और मेरे छात्रों को मिलता रहा। | ||||||||||||
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