पहला शेकहैंड!
अगस्त, 1985 से पहले मैं केंद्रीय हिंदी संस्थान के नाम से परिचित और काम से अपरिचित था। लेकिन 1985 के उत्तरार्ध के अनंतर संस्थान की कार्यशैली से भी मेरा परिचय घनिष्ठतर हो गया। द्वितीय भाषा शिक्षण के लिए अनुस्तरीय पाठ्यक्रम निर्धारण कार्य गोष्ठी में भाग लेने के लिए मुझे आमंत्रित किया गया था। मेरे लिए यह आमंत्रण किसी आश्चर्य से कम नहीं था और राँची जैसे शहर के सुविधाहीन शैक्षणिक माहौल से आकर केंद्रीय हिंदी संस्थान के आगरा स्थित मुख्यालय को देखना एलिस के वंडरलैंड की यात्रा से अलग नहीं था। अत्याधुनिक भाषा प्रयोगशाला और बहुत ही समृद्ध पुस्तकालय! एकदम अलग दुनिया, एकदम भिन्न परिवेश। यह था केंद्रीय हिंदी संस्थान से मेरा पहला 'शेकहैंड। 8 से 10 अगस्त, 1985 के बीच आयोजित अनुस्तरीय पाठ्यक्रम निर्धारण कार्यगोष्ठी के बहाने केंद्रीय हिंदी संस्थान में पहली बार पहुँच कर संस्थान के कई प्रोफेसरों, रीडरों से मेरा परिचय हुआ। डॉ. कृष्ण कुमार शर्मा, डॉ. विजय राघव रेड्डी, डॉ. रामवीर सिंह और डॉ. कृष्ण कुमार गोस्वामी से हुई पहली मुलाकात अब स्नेहोपहार बनकर गले का हार बच चुकी है। इसके बाद कुछ महीने बाद ही 'भारतेन्दु पुण्यशती समारोह का आयोजन 20 से 22 नवम्बर, 1985 में केंद्रीय हिंदी संस्थान में हुआ। इस आयोजन के पुरोधा अग्रज डॉ. कृष्ण कुमार शर्मा ने मुझे इस अवसर पर 'भारतेन्दु की व्यगं भाषा' शीर्षक आलेख प्रस्तुत करने के लिए आमंत्रित किया। इस समारोह में हिंदी समीक्षा के कई हिमालयों से मेरा पहली बार परिचय हुआ - डॉ. राममूर्ति त्रिपाठी, डॉ. रमेश कुंतल, डॉ. शिव कुमार मिश्र, डॉ. पांडेय शशिभूषण शीतांशु और कई अन्य। संस्थान के निदेशक डॉ. बालगोविन्द मिश्र से इस संगोष्ठी के दौरान पहले मुलाकात हुई। उनकी वक्तृता और वैदुष्य साक्षात्कार से लगा कि केंद्रीय हिंदी संस्थान के लिए इनसे बेहतर निदेशक और कौन हो सकता है? उन्हें देखकर गुरुवर आचार्य देवेन्द्र नाथ शर्मा की छवि साकार हुई। वैसे आचार्य शर्मा भी तो इस संगोष्ठी में थे ही। संस्थान के पुराने मित्रों का नवीकरण हुआ और भारतेन्दु के स्मरण के बहाने संस्थान की सक्रियता उजागर हुई। इस सक्रियता का फलागम कुछ वर्षों बाद 'भारतेन्दु - पुनर्मूल्यांकन के परिदृश्य' पुस्तक के रूप में सामने आया, जिसमें भारतेन्दु पुण्यशती समारोह में प्रस्तुत आलेख एकत्र थे। ठीक एक वर्ष बाद संस्थान की ओर से मेरे पास 'मैथिली शरण गुप्त शताब्दी समारोह' के लिए 20 से 22 नवम्बर, 1986 के बीच 'गुप्त जी की भक्त्यात्मक चेतना शीर्षक आलेख प्रस्तुत करने का न्योता मिला। समारोह के आयोजक वही डॉ. कृष्ण कुमार शर्मा, संस्थान के निदेशक वही चिरयुवा डॉ. बालगोविन्द मिश्र, संस्थान की साफ-सफाई और चुस्ती-फुर्ती वही! बहुत आनंद आया। | ||||||||||||
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