- लेखक- डॉ. अर्जुन तिवारी
हिंदी विश्व-मंगल की सहज भाषा है। इसके समान सुस्पष्ट, सरल, स्वच्छ कोई दूसरी भाषा इस भूतल पर नहीं है। स्वतंत्रता, सम्प्रभुता, राष्ट्रीय एकता की यही अमर वाणी है। हिंदी में प्रेम की तरंग है, जो प्रेम प्रचारक सूफियों की प्रिय भाषा रही। अमीर खुसरो, जायसी, मुल्ला दाउद, कुतुबन, मंझन उस्मान, कबीर ने हिंदी को अनहद प्रेम की भाषा बनाकर इसी में खुदा से बातें कीं। गुजराती महदवी सूफी मियाँ मुस्तफा ने हिंदी को फारसी से उत्तम बतलाया।
हिंदी पर न मारो ताना, सभी बतावें हिंदी माना
यह जो है कुरान खुदा का, हिंदी करे बयान सदा का।
मैं केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा को धरती की शोभा मानता हूँ। देशरत्न डॉ. राजेन्द्र प्रसाद और मोटूरि सत्यनारायण की अद्भुत उपलब्धि के रूप में देखता हूँ। हिंदी के अति पावन मंदिर की चर्चा आने पर भावुकता मुझ पर हावी हो जाती है। पिछले दिनों प्रभारी निदेशक प्रो. महेन्द्र सिंह राणा ने कुछ भेजने का आदेश दिया तो पुरानी बातों में खो गया।
क्या बुरी चीज़ है ये भावना
बात करने में गौरव भर आई।
इंशां अल्ला खाँ ने 'रानी केतकी की कहानी', गुरु गोविन्द सिंह ने अपने ग्रंथों और फादर कामिल बुल्के ने प्रमाणिक शब्दकोश द्वारा हिंदी की सेवा की। अनेक स्वनामधन्य मनीषियों ने अपनी हिंदी प्रेम-गंगा से भारत के साथ पूरे विश्व को एक सूत्र में बाँधा। विश्व एक उपवन है, जिसका जीता-जागता मनोरम भाग केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा है। विश्व के प्राय: समस्त राष्ट्रों के हिंदी प्रेमी यहीं पल्लवित-पुष्पित होते हैं।
|
लगभग दो वर्षों तक संस्थान में रहने का अवसर मिला। सभी अधिकारियों, कर्मचारियों, छात्र-छात्राओं ने सप्ताह में एक दिन श्रमदान द्वारा संस्थान को पावन आश्रम के रूप में परिणत करके स्मरणीय कार्य किया। प्रात: सायं टहलते समय तत्कालीन निदेशक प्रो. नित्यानंद पाण्डेय, कहीं पान का पीक देखते तो उसे स्वत: साफ कर देते, सदा-सर्वदा परिसर की स्वच्छता, उसकी विस्तार-यात्रा पर चिंतन-मनन करते रहते थे। एक बार उन्होंने कहा- "यहाँ के प्रोफेसर अध्ययन-अध्यापन में अप्रतिम हैं, कुलसचिव की कर्या-दक्षता बेजोड़ है, सभी उच्चाधिकारियों में श्रद्धेय मोटूरि जी की आत्मा बसती है, यही संस्थान अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय बनने में सक्षम है। भगवान! वह दिन कब आयेगा। जहाँ बुद्धजीवी होते हैं, वहाँ मतभेद स्वत: पनपता है। मस्तिष्क और दिल में पैदा हुई आरजू के चलते संघर्ष भी स्वाभाविक है, वह नहीं बदनाम जिसने दिल को है पैदा किया, दिल से जो पैदा हुई, वह आरजू बदनाम है। चकबस्त लाख मतभेद, मन भेद, संघर्ष के रहते हुए भी संस्थान प्रगति पथ पर अग्रसर है। मुझे पत्रकारिता एवं अनुवाद कला का सलाहकार नियुक्त किया गया। मैं वहीं पढ़ाने किंतु स्वत: पढ़कर लौट आया। पत्रकारिता की लोकप्रियता थी, अनेक प्रोफेसर, डॉक्टर, इंजीनीयर ने अपना नाम लिखा लिया। एक प्रोफेसर से मैंने प्रश्न किया- 'आप पत्रकारिता क्यों पढ़ रहे हैं? उन्होंने कहा- कौन सी बात कहाँ, कैसे कही जाती है? ये सलीका हो तो हर बात सुनी जाती है। दूसरे दिन डॉक्टर ने शिष्य से पूछा तो जवाब पाया-
बात चाहे बेसलीका हो मगर
बात करने का सलीका चाहिए।
आज मैं जहाँ जाता हूँ, संस्थान में पढ़े पत्रकारिता के छात्रों को उच्च पदस्थ पाता हूँ, जिससे मुझे सात्विक आनंद की प्राप्ति होती है। 'एक ह्दय हो भारत जननी' को साकार करने वाला केंद्रीय हिंदी संस्थान, भारत सरकार के मानव संसाधन विकास मंत्रलय की अनूठी उपलब्धि है। जिसके सत्प्रयास से हिंदी विश्व-भाषा की बिंदी के रूप में चमत्कृत होगी, ऐसा मेरा दृढ़ विश्वास है। स्वर्ण जयंती समारोह शुभद, सुखद, शिवमय हो, यही मंगलकामना है।
|