यादों की बारात
मेरा संस्थान से परिचय वर्ष 1959 से है। मैं उस समय सेण्ट जोंस कॉलेज में एम. ए. हिंदी में अध्ययनरत था। उन्हीं दिनों इस संस्थान की कक्षाएँ विजय नगर कॉलोनी, आगरा विश्वविद्यालय के समीप स्थित डॉ. श्याम सुंदर दीक्षित के किराये के भवन में चलती थीं। सम्मानीय श्री रामकृष्ण नावड़ा जी की देखरेख में हिंदीतर प्रदेशों के छात्र-छात्राओं की कक्षाएँ यहाँ चलती थीं। उस समय के शिक्षार्थी तथा शिक्षक दोनों ही समर्पित भाव से निष्ठापूर्वक हिंदी का अध्ययन-अध्यापन करते थे। उस समय के लोगों में राष्ट्रीय एकता की भावना तथा हिंदी के प्रति प्रेम कूट-कूट कर भरा रहता था। वर्ष 1960 में दिसम्बर माह में आगरा में शीत का भयंकर कोप हुआ। दक्षिण भारत के निवासी संभवत: उत्तर भारत की हाड़फोड़ ठंड से परिचित नहीं थे। इस कारण वे ठंड से बचाव के अधिक कपड़े अपने साथ नहीं लाये थे। सभी विद्यार्थी ठंड से कँपकँपा रहे थे। इस नवागत एवं अप्रत्याशित विपत्ति से व्यथित होकर श्री नावड़ा जी ने हमारे पूज्य गुरूवर प्रो. हरिहर नाथ टंडन तत्कालीन सेण्ट जोंस कॉलेज के हिंदी विभागाध्यक्ष जी से सम्पर्क साधा। डॉ. टंडन सेण्ट जोंस कॉलेज के ही नहीं, अपितु हिंदी क्षेत्र के जाने-पहचाने विद्वानों डॉ. नगेन्द्र, डॉ. हजारी प्रसाद द्विवेदी, लक्ष्मी नारायण मिश्र, डॉ. वृन्दावन लाल वर्मा, मैथिलीशरण गुप्त, डॉ. रामकुमार वर्मा, डॉ. धीरेन्द्र वर्मा, डॉ. बाबूराम सक्सैना, बाबू गुलाब राय, पुरूषोत्तम दास टंडन, श्री नाथ चतुर्वेदी आदि से उनका सानिध्य एवं सम्पर्क था। डॉ. रांगेय राघव टंडन जी के प्रिय शिष्यों में से थे। नावड़ा जी की व्यथा को वे तुरंत समझ गये और उन्होंने आगरा के उस समय के प्रतिष्ठित प्रकाशक श्री भोलानाथ अग्रवाल, स्वामी विनोद पुस्तक मंदिर, श्री जगदीश प्रसाद अग्रवाल, स्वामी गया प्रसाद एंड संस, श्री राधेमोहन अग्रवाल स्वामी शिवलाल अग्रवाल एंड कम्पनी, श्री पदमचंद जैन, स्वामी रतन प्रकाशन मंदिर तथा मेहरा प्रकाशन के स्वामी मेहरा बंधुओं से सम्पर्क साधकर कुछ धन एकत्र किया। फिर उस प्राप्त धनराशि से खादी भंडार आगरा से कम्बल एवं रजाइयाँ खरीदी गयीं। इस समान को तांगों में लादकर विजय नगर कॉलोनी आगरा स्थित हिंदी संस्थान पहुँचाया गया। इस पूरी प्रक्रिया में मैं भी श्रद्धेय टंडन जी के साथ जुड़ा रहा। श्री नावड़ा जी टंडन जी के इस उपकार को आजीवन नहीं भुला पाये। जब-जब संस्थान की बैठकें हुआ करती थीं, तब-तब श्री नावड़ा जी इस उपकार के प्रति सदैव कृतज्ञता ज्ञापित किया करते थे। परम श्रद्धेय मोटूरि सत्यनारायण जी की दूरदर्शिता से आगरा में हिंदी संस्थान का जो बीजारोपण हुआ, वह आज एक विशाल वट-वृक्ष के रूप में लहराकर सम्पूर्ण भारत एवं विदेशों में हिंदी का परचम फहरा रहा है। | ||||||||||||
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