श्रीलंका की पाती...!
केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा के कार्यक्षेत्र के अंतर्गत विदेशी विद्यार्थियों के लिए हिंदी शिक्षण कार्यक्रम के द्वारा श्रीलंका का कॅलणिम विश्वविद्यालय तथा केंद्रीय हिंदी संस्थान का संबंध लगभग 1982 से जुड़ा हुआ है। इस योजना के अंतर्गत चुने गए विदेशी छात्रों को छात्रवृत्तियों के आधार पर संस्थान द्वारा संचालित किए जाने वाले पाठ्यक्रमों में सम्मिलित होने का अवसर मिलता है। मैंने श्रीलंका में स्थापित भारतीय दूतावास के अधिकारियों से अनुरोध किया कि केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा की ये छात्रवृत्तियाँ श्रीलंका के सिंहली छात्रों को भी प्रदान करवाई जाएँ, जिससे हमारे हिंदी के विद्यार्थी भी वहाँ से हिंदी का अच्छा ज्ञान प्राप्त कर सकें। फलत: आरंभ में दो या तीन छात्रवृत्तियाँ प्रदान की गईं। अब इनकी संख्या दस-पंद्रह तक बढ़ा दी गई है। इसी कार्यक्रम के द्वारा संस्थान से मेरा तथा कॅलणिम विश्वविद्यालय का संबंध सक्रिय रहा है। प्रतिवर्ष कॅलणिम विश्वविद्यालय के हिंदी के विद्यार्थियों को केंद्रीय हिंदी संस्थान के पाठ्यक्रमों का अध्ययन करने का अवसर मिलता है और वे स्वदेश लौटकर अपने हिंदी विषय में सफलता प्राप्त करते हैं। मैंने सन 1977 में लखनऊ विश्वविद्यालय से हिंदी में पी. एच. डी. की उपाधि प्राप्त कर श्रीलंका लौटने पर कॅलणिम विश्वविद्यालय में हिंदी में बी. ए. ऑनर्स का पाठ्यक्रम आरंभ किया। हिंदी शिक्षण संबंधी कुछ समस्याओं के समाधान तथा शिक्षण लखनऊ विश्वविद्यालय, इलाहबाद विश्वविद्यालय, पंजाबी विश्वविद्यालय, पटियाला तथा केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा सम्मिलित थे। हिंदी भाषा का अध्ययन-अध्यापन मातृभाषा के रूप में, द्वितीय भाषा के रूप तथा विदेशी भाषा के रूप में किस प्रकार किया जाता है? कौन-कौन-सी समस्याएँ सम्मुख आती हैं? उनका समाधान कैसे होता है?, आदि इन बातों पर विश्वविद्यालय तथा संस्थान के हिंदी के अध्यापकों के साथ विचार-विमर्श करना मेरा उद्देश्य था।
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