जीवन से जब हो गई थी निराश
तब बँधी एक नई आस
पर मित्रों इसे गलत मत समझना
निराश का अर्थ है नौकरी का न मिलना
जीवन का यों ही उद्देश्य और धन हीन बहना
उसी समय अचानक
मन में उठी हूक
मौका मिलते ही लिया लपक
मुझसे न हुई कोई चूक
मौका था संस्थान में आने का
अपना भाग्य और हाथ आजमाने का
संस्थान में प्रवेश मैंने पा लिया
भगवान को सतत् धन्यवाद दिया
पर मन में थी घबराहट और प्रश्न
न आने के भी किये मैने कई यत्न
पर फिर भी मुझे आना पड़ा
रोते-धोते ट्रेन में बैठना ही पड़ा
बस फिर क्या था ट्रेन चल पड़ी
आगरा पहुँचने की आन पड़ी घड़ी
16 अगस्त को पहुँची संस्थान
संस्थान देखकर मेरे तो उड़ गए प्राण
जैसे-तैसे मन को समझाया
पर साथ ही चिन्ता और सशंय गहराया
इसके आगे कहें क्या मित्र
बहुत ही लुभावने हैं आगे के चित्र
छात्रावास में मैंने रखे कदम
समान उठाते ही मेरे समाप्त हुए दम-खम
पर आई मेरे पास एक साथिन
मेरे प्रयत्न किए सरल जो थे कठिन
खैर साथियों आगे है कुछ इस प्रकार कहानी
छात्रावास की सीढि़याँ चढ़ते हुए मुझे महसूस हुआ मैं हो गई सयानी
सहवासिनि, सहपाठिनी और सहपाठी मिले
देखने को भारत के कई रंग मिले।
कक्षा में जब प्रथम कदम बढ़ाया
प्रथम अन्तर के विषय ने खूब छकाया
समझ में न शिक्षा आई न आया मनोविज्ञान
लगा कि अपने बन्द कर लूँ कान
हिन्दी संरचना से जीना हुआ मुहाल
सोच रही थी अब क्या होगा मेरा हाल
मन हुआ बोझिल नितांत
जब पढ़ने को हुए शिक्षा सिद्धान्त
तब लगता कब बजेगी घंटी
चली जाऊँ छात्रावास
कुछ राहत तो मिले
लूँ कुछेक श्वास
पर घंटे भर की खुशी के बाद
चखना पड़ा भाषा विज्ञान का स्वाद
दूर खड़ी इंतजार कर ही थी शिक्षण विधियाँ
पढ़ कर उड़ गई निदिया
फिर आया भाषा परिमार्जन का मौसम
पर इसमें मैं नहीं गई सहम
अंतत: बारी आई कविता की
बहने लगी रस की धारा सरिता की।
मेरे जीवन का यह नया परिवर्तन
कैसे करूँ इसका अभिनंदन
समझ न पाऊँ मैं
पता नहीं क्या बताऊँ मैं
खैर आगे जो हुआ सुनाती हूँ
जो अनुभूत किया वह दिखलाती हूँ
सोचती हूँ कहाँ ओड़िशा के एक कोने में थी
और अपने ही सपने संजोने में थी
यहाँ आकर कई लोग मिले
जिसे दूर समझती थी वह मिटे फासले
मित्रों की संख्या बढ़ी
सम्बन्धों की मूर्ति गढ़ी
चलिए अब कुछ ऐसी बातें हो जाएँ
अपने शिक्षक और शिक्षिकाओं से पहचान करवाएँ
शुरूआत पांडे सर से करते हैं