समन्वय छात्र पत्रिका-2011 पृ-27
"मोअत्स त्यौहार" की कहानी-इम्वापांगला. एल. इमसोंगू
भारत देश के उत्तर-पूर्व के सातों राज्यों में से नागालैंड एक राज्य है। इस राज्य में अनेक जनजातियाँ निवास करती हैं। उनमें से 'आआ' का प्रमुख जाति है। 'मोअत्स' इस जाति का प्रमुख उत्सव है। यह मई 1 से 3 तक मनाया जाता है। 'मोअत्स’ पर्व तब मनाया जाता है, जब लोग अप्रैल माह के अन्त तक अपने खेतों में बीज बोने का कार्य समाप्त कर लेते हैं। यह पर्व समृद्ध फसल और अच्छे स्वास्थ्य के लिए मनाते हैं। यह 'आओ' मिल-जुलकर हर साल मनाते हैं। लोगों का मानना है कि इस उत्सव के पीछे एक कहानी छिपी है। यह कहानी इस प्रकार है- एक प्रचलित दंतकथा के अनुसार माना गया है 'आओ' जाति 'लोंगट्रॉक' (छह पवित्र पत्थरों) से उत्पन्न हुई है। उनके पूर्वजों द्वारा दिए गए विवरण से ज्ञात होता है कि 'मोअत्स' मनाने की परंपरा 'चुगलियिमती' नामक स्थान से शुरू हुई। एक समय वहाँ अकाल के कारण बहुत बड़ी महामारी फैली थी। बहुत से लोग इस महामारी का शिकार हुए। एक भयंकर तूफान ने घरों, पेड़-पौधों और खेत खलिहानों को नष्ट कर डाला। उनके इस विपत्ति के माहौल में जंगली बाघ का आतंक भी बढ़ गया था। लोग भयभीत हो गए थे, कहीं भी जाने से डरते थे। उनके पालतू पशुओं की जान पर भी खतरा मंडराता रहता था। लोग अपने घर में बन्दी की तरह डरकर रहने लगे और घर से बाहर जाने में वे असमर्थ थे। कुछ बुद्धिमान व्यक्तियों ने मिलकर यह तय किया कि वे सभी इस समस्या के निवारण हेतु जादूगरनी ओंगाग्ला के पास जाएँगे। जादूगरनी ने 'आम्ची' (एक प्रकार का पत्ता) नामक पत्ते में देखकर इस महाविनाश का कारण जान लिया। उसने लोगों को समझाया कि उन्हें तीन दिनों तक व्रत रखना होगा, जिससे कि उनके पापों का प्रायश्चित हो तथा उन्हें ईश्वर से वरदान मिले। वे लोग तुरन्त ही तीन दिनों तक का अनुष्ठान करने में असमर्थ थे। कारण गाँव के लोग अकाल के कारण बहुत दिनों के भूखे थे और बाघ के डर से भी कुछ भयभीत थे। कुछ समय बीत जाने पर लोगों में हिम्मत बँधी और एक रात 'सेनदेन रीजू' (केन्द्रीय मुरोंगा/युवक एवं युवतियों के रहने का स्थान) के कुछ युवकों एवं युवतियों ने हाथ में मशाल लेकर गाँव की गलियों में लोकगीत गाते हुए एक जुलूस निकाला। जुलूस के समय उन्होंने मुरोंगे से युवतियों एवं छ: मुरोंग के युवकों को भी जुलूस में सम्मिलित होने के लिए आमंत्रित किया। सातवें मुरोंग के युवक और युवतियों ने चुंगलियिमति की गलियों में लोकगीत गाते हुए जुलूस निकाला। उनके गीत कुछ इस प्रकार के थे- नहीं डरते बाघ से जादूगरनी ओंगाग्ला के परामर्श से उन्होंने तीन दिनों तक अपने पापों के प्रायश्चित हेतु अनुष्ठान किया। इन दिनों उन्होंने उपवास रखा, नृत्य किया, गीत गाए और ईश्वर से आशीर्वाद माँगा। युवक एवं युवतियाँ समूह बनाकर एक-दूसरे को जवाब देते हुए गाने लगे- युवक- उस वर्ष से गाँव के लोगों को ईश्वर का आशीर्वाद मिला और उनके खेतों में समृद्धि आती गई। उन्हें ईश्वर का वरदान फसल में समृद्धि के रूप में मिला, इसलिए इन तीन दिनों के अनुष्ठान को 'मोअत्स' कहा गया। इसके फलस्वरूप बीमारी, बाघ का आतंक और प्राकृतिक विपदाओं से मुक्ति मिलती है। इसी आस्था में 'आओ' जाति के लोग आज भी तीन दिनों का अनुष्ठान 'मोअत्स' मनाते हैं। इस प्रकार प्रति वर्ष बीज बोने के बाद अच्छी फसल की कामना से 'आओ' जाति के लोग 'मोअत्स' मनाते हैं, ताकि उनकी फसल अधिक से अधिक समृद्ध हो। तृतीय वर्ष
|