शहर में रास्ते के किनारे
खुली जगह पर
भद्दे जैसी दिखाई देती कुछ झोपड़ियाँ
कुछ झोपड़ियों में
विश्व का संसार दिखाई देता है
एक ही झोपड़ी में,
उनका ऑफिस है, उनका कारखाना है,
उसी में उनके घर का सब सामान है,
सामान भी क्या ?
कुछ फटे पुराने कपड़े
कुछ टूटे-फूटे बरतन
तीन पत्थरों पर चलता उनका चूल्हा
उनके कारखाने में एक भट्टी नजर आती है ?
जो एक बूढ़ी औरत चला रही है
दूसरी तरफ काला कोयला लाल होता है
लोहा भी लाल हो रहा है
वहीं उस कारखाने का मैनेजर
हाथ में चिमटा लिए
लाल हुए लोहे को पकड़ रहा है
और उस लाल हुए लोहे पर
एक औरत, एक लड़की और एक छोटा बच्चा
एक-एक कर हथौड़े से उस प्रहार कर रहे हैं।
उस औरत को देखकर
ऐसा लग रहा है
इसमें इतनी शक्ति आयी कहाँ से
औरत तो कमजोर होती है,
मुलायम होती है, नाजुक फूल होती है
उसके हाथों में तो
दस किलो का हथौड़ा है।
उन बच्चों को देखकर
ऐसा लग रहा है।
ये तो नन्हें बच्चें हैं
इनके हाथ में तो
किताबें-खिलौने होने चाहिए
लेकिन इन्हीं हाथों में हथौड़ा है।
मैं सोचता रहा...
औरत और बच्चों में
इतना बल आया कहाँ से
प्रकृति से, भगवान से,
बोर्नविटा से, कॉम्पलान से
या डाबर च्यवन प्राश से
नहीं-नहीं यह बल तो,
उन्हें मिला है
भूखे पेट से
भूखे पेट से