समन्वय छात्र पत्रिका-2012 पृ-25
प्रेम परीक्षा (हिंदी नाटक)विष्णु खडसे
(एक बड़े से कक्ष में दीवार पर एक ओर कुछ भाले, तलवार एवं ढाल टंगे हुए हैं। दूसरी ओर दीवार पर मीनाक्षी का सुंदर चित्र लगा है (पर्दा उठते ही शामल कुछ सुंदर पुष्पों को एक पात्र में सजाकर रख रही है तथा एक दो पुष्पों को मीनाक्षी के बालों में लगाती है।) मीनाक्षी : (पुष्पों को देखकर) कितने सुंदर हैं ये पुष्प, इनकी गंध पर तो मैं मुग्ध हो जाती हूँ। शामल : क्षमा करें, राजकुमारी जी, किंतु इन पुष्पों से अधिक सुंदर तो आप हैं। मीनाक्षी : (शर्माकर) इश् धत्। शामल : इसी कारण तो महासभा में आमंत्रित राजकुमार आलोक आप को देखकर मोहित हो गए थे। मीनाक्षी : क्या वे तुमसे मिले थे। शामल : हाँ, वे तो आपसे मिलने हेतु आतुर हो रहे हैं। मीनाक्षी : क्या उनसे मिलना उचित होगा। शामल : यह निर्णय तो आप ही लें राजकुमारी जी। मीनाक्षी : (सोचकर) अ... ठीक है, हम उनसे मिलेंगे। शामल : क्षमा करें, परंतु एक अन्य बात कहनी थी राजकुमारी जी। मीनाक्षी : निसंकोच कहो। शामल : हमारे राज्य के सैनिक विभाग के प्रमुख योद्धा भार्गव, मन ही मन आपसे प्रेम करते हैं। मीनाक्षी : (आश्चर्य से) क्या? वह तो एक साधारण सा योद्धा है। उसने यह दुस्साहस कैसे किया। शामल : राजकुमारी जी, प्रेम में उच्च और निम्न, श्रेष्ठ और कनिष्ठ का अंतर नहीं होता। वह तो हृदय में उत्पन्न होने वाली मधुर ध्वनि है, जो एक हृदय से दूसरे हृदय तक पहुँचती है। वे वीर हैं, साहसी हैं, हंसमुख हैं और वचननिष्ठ भी हैं। मीनाक्षी : किंतु तुम उनके पक्ष में क्यों बोल रही हो? शामल : वे शैशव अवस्था से ही मुझसे परिचित हैं, वे मेरे पिता के शिष्य हैं तथा मेरे बंधु समान हैं। मीनाक्षी : क्या तुम्हें उनकी सत्यता पर विश्वास है? शामल : हाँ राजकुमारी जी। मीनाक्षी : ठीक है, तनिक मैं भी तो देखूँ कितनी सत्यता है उनके प्रेम-आलाप में।
(मीनाक्षी बैठी हुई है। दीवार पर लगी अपनी तस्वीर को निहार रही है। तभी भार्गव का प्रवेश होता है।) भार्गव : प्रणाम राजकुमारी जी। मीनाक्षी : (चौंककर पीछे पलटती है।) अ.... आप, आइए। भार्गव : राजकुमारी जी, मैं आप की क्या सेवा कर सकता हूँ? मीनाक्षी : (क्रोधित होकर) आप हमारे सेवक हैं और हमारी सेवा ही आपका धर्म-कर्म है। अत: आपने मुझसे प्रेम करने का दुस्साहस कैसे किया? भार्गव : (संकुचित होकर एवं थोड़ा रुक कर) क्षमा करें, राजकुमारी जी, परंतु यह मेरे हृदय का नांद है। इसे मैं कैसे रोक सकता हूँ। मीनाक्षी : आप इस योग्य भी नहीं है कि मेरे इस (उंगली से दीवार पर लगा अपना चित्र दिखाकर) चित्र से प्रेम कर सकें। आप हमारे राज्य के केवल एक सामान्य सैनिक हैं और स्वयं से मेरी तुलना कर रहे हैं। भार्गव : नहीं राजकुमारी जी, मैं इस योग्य नहीं हूँ, किंतु यह भी सत्य है कि मैं आप से प्रेम करता हूँ। मेरा प्रेम आपके इस स्थूल रूप के प्रति नहीं है, मेरा प्रेम आप की उस प्रतिमा के प्रति है, जो मेरे हृदय में विद्यमान है और इसे मैं ईश्वर तुल्य मानता हूँ। मीनाक्षी : इसका क्या प्रमाण है? भार्गव : मैं एक स्वामी सेवक, एकनिष्ठ योद्धा हूँ। मेरा वचन और प्रण मुझे अपने प्राणों से भी अधिक प्रिय हैं। मीनाक्षी : यदि आपके प्रेम में इतनी सत्यता है, तो मुझे ऐसी वस्तु अर्पण कीजिए जो पवित्र हो। जिसे आपने युद्ध में कभी न खोया हो, जिसे आप ईश्वर के चरणों में अर्पित कर सकें एवं वह आपके लिए सर्वाधिक मूल्यवान हो। भार्गव : यदि, यही मेरी सत्यता की प्रेम परीक्षा है, तो मुझे स्वीकार है। मैं वही वस्तु आपको समर्पित कर रहा हूँ, जो पवित्र है, युद्ध मे मैंने इसे कभी नहीं खोया, जिसे मैं ईश्वर के चरणों में अर्पित करता हूँ तथा मेरे लिए जो सबसे अधिक मूल्यवान है। (भार्गव तत्काल दीवार पर टंगी तलवार निकालता है और एक क्षण में अपनी गरदन काट देता है। खून से लथपथ शरीर देखकर मीनाक्षी चिल्लाती है।) मीनाक्षी : भार्गव............ भार्गव। (पर्दा गिरता है।) निष्णात
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