समन्वय छात्र पत्रिका-2012 पृ-29:1
अरलाउ(नागा लोक कथा)
न्यानो लोथा
नागालैंड के एक छोटे से गाँव में विधवा माँ और बेटा रहते थे। बेटे का नाम अरलाउ था। वह देखने में बहुत सुंदर और होशियार था। इसलिए गाँव वाले उससे बहुत जलते थे और सभी लड़कियाँ उसके पीछे पड़ी रहती थीं। इसलिए सभी गाँव वालों ने शिकार के बहाने उसे जंगल में ले जाकर मारने की योजना बनाई। उन्होंने जंगल में शिकार किया, मछलियाँ पकड़ीं और लौटते समय अरलाउ को मारकर जंगल में ही फेंक आए। शिकार से सभी गाँव वाले वापस आ गए, लेकिन अरलाउ नहीं आया। इसलिए उसकी माँ बहुत चिंतित हो उठी। कई दिनों बाद अरलाउ के दोस्त को पता चलता है कि गाँव वालों ने अरलाउ को मारकर जंगल में ही फेंक दिया था और उससे उसकी माँ को भी पता चल गया। तब अरलाउ की माँ ने गाँव वालों से बदला लेने की बात सोची। एक दिन उन्होंने गाँव वालों से कहा, 'आप सब लोग खेत में जाओ और अपने-अपने बच्चों को मेरे पास छोड़ दो। मैं सब को खाना बनाकर खिला दूँगी।' तब गाँव वाले अरलाउ वाली बात को भूल गए और उसके पास अपने बच्चों को छोड़ दिया। उसने बच्चों को खाना खिलाकर एक कमरे में बंद कर आग लगा दी और खुद वहाँ से भाग गई। बच्चे सब जलकर राख हो गए। गाँव वालों को जब पता चला कि अरलाउ की माँ ने उनके बच्चों को जला दिया है, तब वे सब उसको ढूँढने लगे। लेकिन वह उनको नहीं मिली। वह गाँव वालों को कभी नहीं मिली। इसलिए यह माना जाता है कि जोर-जोर से हवा चलती है, तब बाँसों की आवाज इसी वजह से होती है। यह एक लोथा जाति की लोक कथा है। तृतीय वर्ष
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