समन्वय छात्र पत्रिका-2012 पृ-34
मेरा जिला "नर्मदा जिला"वसावा रविन्द्र कुमार शांतिलाल
"नर्मदा" शब्द का अर्थ होता है, "नर्म" यानी "आनंद" और "दा" का मतलब "देनार" इसी प्रकार नर्मदा का अर्थात् "आनंद देने वाला"। वास्तव में नर्मदा जिले का नाम नर्मदा नदी के नाम से बनाया गया है। नर्मदा नदी इस नर्मदा जिले की सबसे बड़ी नदी और आध्यात्मिक दृष्टि से महत्त्व अधिक होने के कारण इस जिले का नाम नर्मदा रखा गया।
गुजरात सरकार ने 2 अक्टूबर, 1997 को नर्मदा जिले की रचना की थी। नर्मदा जिले में चार तहसीलों का समावेश किया गया है-
जिले की 76 प्रतिशत जनसंख्या अनुसूचित जनजातियों की है और 2 प्रतिशत अनुसूचित जातियों तथा 22 प्रतिशत अन्य जातियों की है। नर्मदा जिले का शहर राजपीपला है। राजपीपला शहर राज्यमार्ग से बड़ोदरा, भरूच, अंकलेश्वर और सूरत जैसे औद्योगिक नगरों से जुड़ा हुआ है। तथा रेलमार्ग से अंकलेश्वर से जुड़ा हुआ है। नर्मदा जिले का कुल भौगोलिक विस्तार 2,75,566 वर्ग कि.मी. है। समग्र जिला 21.57 उत्तरी अक्षांश से 73.47 पूर्वी रेखांश के बीच स्थित है। नर्मदा जिले के पूर्व में महाराष्ट्र राज्य का नंदुरबार जिला, पश्चिम में भरूच जिला, उत्तर में बड़ोदरा जिला और दक्षिण में सूरत तथा तापी जिला बसा हुआ है। समग्र नर्मदा जिला सतपुड़ा पर्वत की पहाड़ियों में बसा हुआ है। इसलिए समग्र नर्मदा जिले का पोना भाग सतपुड़ा के पहाड़ों में स्थित वनों से आच्छादित है। इन वनों का कुल क्षेत्रफल 1,147.62 वर्ग कि.मी. तथा खेत करने योग्य विस्तार 1,30,139 हेक्टेयर है। खेती में सिंचाई लायक विस्तार 65,464 हेक्टेयर है। नर्मदा जिले की कुल जनसंख्या जनगणना 2001 के अनुसार 5,14,404 है, जिसमें पुरुषों की जनसंख्या 2,63,986 तथा महिलाओं की जनसंख्या 2,50,418 है। जिले की साक्षरता दर 60.374 है। नर्मदा जिला प्राकृतिक सौंदर्य और वन संपत्ति से लदा हुआ है। इस जिले में स्थित सरदार सरोवर नर्मदा बाँध की बहुहेतुक योजना के कारण अंतर्राष्ट्रीय नक्शे में महत्त्व का स्थान है। नर्मदा जिले में नर्मदा और करजण दो मुख्य नदियाँ स्थित हैं। नर्मदा नदी पर नवागम सरदार सरोवर बाँध बनाया गया है, जिसकी ऊँचाई 121.92 मीटर है। करजण नदी पर जीतनगर बाँध बनाया गया है। इसके साथ-साथ सागबारा तहसील में चोपड़बाव और नाना कारूडीआँबा बाँध बनाया गया है। जिले की सुरेराश औसत वर्षा 800 मिमी. से 1000 मिमी. है। इतिहास के पन्नों में आज का नर्मदा जिला स्वतंत्र भारत के देशी रजवाड़ों में से एक स्वतंत्र राजपीपला राज्य था, जो 9.6.1948 को स्वतंत्र भारत के मुंबई राज्य में समाविष्ट हुआ था। राजपीपला का नाम कैसे पड़ा? उसकी आधारभूत जानकारी उपलब्ध नहीं है। परंतु कहा जाता है कि राजपीपला राज्य का प्रथम राजसिंहासन पीपल के पेड़ के नीचे स्थापित हुआ था। दूसरी प्राप्त जानकारी के अनुसार प्राचीन काल में नर्मदा नदी के दक्षिणी तट पर पीपलादे नामक तपोवन था। सर्वप्रथम अवंतिका (उज्जैन) के महाराजा विक्रम वंश के परमार श्री नंदाय ने विक्रम संवत बारसोमी सदी के प्रारंभ में यहाँ अपना राज्य स्थापित किया था। नंदशाय की मृत्यु के पश्चात जयचंद तथा सन 1403 में जयचंद की मृत्यु के बाद उनके भांजे समर सिंह ने अपना नाम अमर सिंह बदलकर सत्ता की। कुछ समय के पश्चात सन 1514 में महाराजा पृथुराज ने अपना राजतिलक बसावा समाज के लोगों के हाथों से कराया था और अपनी सत्ता स्थापित की। उसी समय से आज तक बसावा समाज के पुरुष लोगों के हाथों से ही राजवंशियों का तिलक कराने की परम्परा रही थी और यही परम्परा अभी तक है। संवत 1652 से 1661 तक यहाँ के शासक राजा दीपसिंह ने इसी समय का राजपीपला नगर बसाया था। सन 1930 में राजा जीतसिंह ने अपनी सत्ता स्थापित की और करजण नदी के संगम स्थल पर राजपीपला की राजधानी बनाई थी। सन 1830 में राजपीपला की राजधानी नांदोद बनाया गया। सन 1918-19 को नांदोद नाम का राजपीपला परिवर्तन किया गया और अब तक राजपीपला ही रहा है। उस समय से राजपीपला में महाराजा विजय सिंह (1925), महाराजा राजेन्द्र सिंह आदि समाज सुधारक राजाओं ने राजपीपला नगर का अत्याधुनिक विकास किया था। नर्मदा जिले की सबसे अधिक जनसंख्या बसावा और तड़वी समाज के लोगों की है और साथ-साथ अन्य समाज के लोग भी रहते हैं। जिसमें काथोड़ी, कोटवालिया, दुबला धाणका आदि समाज मुख्य हैं। नर्मदा जिले में रहने वाले सभी समाजों की बोली तथा कपड़े पहनने का ढंग भी अलग-अलग है। सभी तहसीलों में बसावा समाज की बोली भी अलग अलग है। सागबारा तहसील महाराष्ट्र राज्य से मिलता जुलता है। बसावा समाज के लोग खाने में दाल-चावल, मक्का की रोटी, ज्वार की रोटी, मुर्गे का मांस, बकरे का मांस तथा हर प्रकार की सब्जी का उपयोग करते हैं। होली यहाँ का मुख्य त्योहार है और साथ-साथ दिवाली, रक्षाबंधन, दशहरा, नवरात्रि, चीरी अमास आदि त्योहार भी मनाते हैं। नर्मदा जिले के लोग अतिथियों का बहुत आदर सत्कार करते हैं और आदर सत्कार करने में पागल हो जाते हैं। घर आए अतिथियों के लिए खाने में मुर्गा अवश्य रहता है। खाने के साथ-साथ यहाँ पर देशी पद्धति से बनाई गई महुट के फूलों की शराब तो बिना मांगे पिलाई जाती है। यहाँ के लोग अतिथि को पेट भर खिलाने में प्रसन्नता महसूस करते हैं।
|