मौत ! जल्लाद हो तुम खूँखार जंगली जानवर सी बेकार है तुमसे कुछ कहना कोई बात करना तुमने समझा ही नहीं कभी औरों का गम छिपा है कहाँ-क्या दूसरों के मन में बस चलो, लूटते चलो... लेकिन और कर भी क्या सकती हो तुम ! लो खाली कर लो किसी माँ के अंक चुभा दो किसी की खुशियों में डंक चकित हूँ मैं तुमसे तुम्हारी करतूतों से पता नहीं मिलता रहा है क्या खास तुम्हें इससे लेकिन है भी तो बेहिसाब किसी काल कोठरी में पड़ी हुई बेहिसाब तुम्हारी गुनाहों की फाइल किसी जमाने से किसी समय से।