फिक्र में बच्चों की कुछ इस तरह धुल जाती है
माँ, कम उम्र में ही बूढ़ी नजर आती है
माँ।
रुह के रिश्तों की ये गहराइयाँ तो देखिए
चोट लगती है हमें और चिल्लाती है
माँ।
हड्डियों का रस पिलाकर अपने दिन के चैन को,
कितनी ही रातों में खाली पेट सो जाती है
माँ।
जाने कितनी बर्फ सी रातों में
ऐसा भी हुआ, बच्चा तो
छाती पर है गीले में सो जाती है
माँ।
सामने बच्चों के खुश रहती है हर एक हाल में,
छिप-छिप कर लेकिन आँसू बरसाती है
माँ।
पहले बच्चे को खिलाती है सुकूनो-चैन से,
बाद में कुछ बचता, उसे शौक से खाती है
माँ।
माँगती ही कुछ नहीं अपनी लिए अल्लाह से
अपने बच्चों के लिए दामन फैलाती है
माँ।
प्यार कहते हैं किसे और ममता क्या चीज़ है,
कोई उन बच्चों से पूछे, जिनकी मर जाती है
माँ।
छीन लेती है वही अक्सर सुकून जिंदगी,
प्यार से दुल्हन बनाकर जिस को घर लाती है
माँ।
फेर लेते हैं नजर जिस वक्त बेटे और बहू,
अजनबी अपने ही घर में बन जाती है
माँ।