समन्वय छात्र पत्रिका-2012 सम्पादकीय
सम्पादकीय"डुबकियाँ सिंधु में गोताखोर लगाता है, उक्त पंक्तियों के संदर्भ में यह बात बिल्कुल सत्य है कि जो लोग कोशिश करते हैं, उनकी कभी हार नहीं होती। यदि बिना धैर्य खोए किसी कार्य को करने की निरंतर कोशिश की जाए, तो उसमें सफलता अवश्यमेव मिलती है। कभी असफलता नहीं मिलती और साथ ही की गई कोशिश भी कभी व्यर्थ नहीं जाती। पूरे मनोयोग और पूरी कोशिश के साथ किया गया प्रत्येक कार्य हमेशा फलदायी होता है। कोशिश करते हुए व्यक्ति को सफलता मिलने में कभी देर अवश्य हो सकती है, लेकिन सफलता मिलती अवश्य है। यदि कोई व्यक्ति सफलता मिलने में इस देर लगने के कारण ही हार मान लेता है, तो यह उसकी अपनी हार होती है। यदि इसी प्रकार मानव प्रारंभ में ही हार मान लिया होता, तो वह आज भी जंगलों में ही भटकता होता और अपना शिकार ढूँढ रहा होता, लेकिन ऐसा नहीं है। कोशिश से ही उस समय मानव ने अग्नि पैदा की थी। उस समय भी मनुष्य ने गोताखोर की तरह ही हार नहीं मानी थी। उसने निरंतर कोशिश कर अनेक आविष्कारों को जन्म दिया था। मनुष्य की ये छोटी-छोटी कोशिशें ही एक दिन किसी बड़े आविष्कार को जन्म देती हैं। यदि जेम्स वॉट केतली में उबलते हुए पानी से बनने वाली भाप की शक्ति को पहचानने की कोशिश न करता, तो न तो रेल का इंजन ही बनता, न रेल बनती और न ही हम सब आज कुछ ही घंटों में सैंकड़ों किलोमीटर की यात्रा कर पाते। इसीलिए हम आज जो कुछ करना चाहते हैं या कुछ बनाना चाहते हैं अथवा स्वयं कुछ बनना चाहते हैं, तो हमें उस दिशा में निरंतर कोशिश करते रहना चाहिए। इस कोशिश में हमें भी उस गोताखोर की तरह धैर्य और संयम रखना चाहिए, जो बिना धैर्य खोए संयम के साथ निरंतर कोशिश जारी रखने पर ही अंतत: समुद्र की गहराइयों से कीमती मोती चुनने में सफलता प्राप्त करता है। आज हम सभी लोग अपने दैनंदिन कार्यों को संपन्न करने हेतु 'भाषा का व्यवहार' करते हैं, लेकिन साथ ही हमारी आवश्यकताएँ भी हमें अपनी मातृभाषा से इतर 'अन्य भाषा' सीखने के लिए केवल प्रेरित ही नहीं करती, बल्कि हमें बाध्य भी करती हैं। हम लोग 'अन्य भाषा' सीखने की कोशिश तो करते हैं, लेकिन अपनी मातृभाषा के व्याघात के कारण गलतियाँ होने के अपने संकोच या भय पर विजय पाने की कोशिश नहीं करते। इसी के परिणामस्वरूप हम 'अन्य भाषा' पर पूर्ण अधिकार कर पाने से वंचित रह जाते हैं। विद्वान भाषा वैज्ञानिकों ने भाषा को 'आदतों का समूह' कहा है और कोई भी आदत निरंतर अभ्यास से ही पड़ती है। इस प्रकार निरंतर किया गया "अन्य भाषा व्यवहार" का अभ्यास आदत बनकर सहज अभिव्यक्ति के रूप में प्रस्फुटित होता है। संस्थान के अध्यापक शिक्षा विभाग में अध्ययनरत हिंदीतर भाषा भाषी छात्र-छात्राओं का यही 'अन्य भाषा हिंदी' में सहज प्रस्फुटन इस "समन्वय" छात्र-पत्रिका में संचित है। यह "समन्वय" छात्र-पत्रिका संस्थान के अध्यापक शिक्षा विभाग में अध्ययनरत हिंदी शिक्षण निष्णात, हिंदी शिक्षण पारंगत, हिंदी शिक्षण प्रवीण तथा त्रिवर्षीय हिंदी शिक्षण डिप्लोमा (नागालैंड) तृतीय वर्षीय कक्षाओं के हिंदीतर विभिन्न भाषा भाषी छात्र-छात्राओं की 'अन्य भाषा हिंदी' में अपनी सृजनात्मक प्रतिभा को दिखाने का सहज माध्यम है। ये छात्र-छात्राएँ इस "समन्वय" छात्र-पत्रिका के माध्यम से 'अन्य भाषा हिंदी' में अपने-अपने बौद्धिक एवं सांस्कृतिक सृजनात्मक कौशल को सहज रूप में प्रस्तुत करते हैं। इसी बहाने उन्हें 'अन्य भाषा हिंदी' में अपनी रचनात्मक आत्माभिव्यक्ति का सहज अवसर भी मिल जाता है। इस छात्र-पत्रिका में छात्र-छात्राओं की स्वरचित (कविता, कहानी, नाटक, निबंध तथा संस्मरण आदि) रचनाएँ प्रकाशित हैं। यह पत्रिका भी ऐसे ही लोगों को प्रोत्साहित करने की एक कोशिश है, जो अपनी-अपनी मातृभाषा में ही नहीं, बल्कि भारत की राष्ट्रभाषा हिंदी में स्वरचित रचनाओं के माध्यम से स्वयं को सहज रूप में अभिव्यक्त करना चाहते हैं तथा अपने राष्ट्र की आवाज़ बनना चाहते हैं। छात्र-छात्राओं के द्वारा 'समन्वय' छात्र-पत्रिका में प्रकाशित स्वरचित विविध विधाओं की रचनाओं के माध्यम से भारत की वर्तमान राजनैतिक, ऐतिहासिक तथा सांस्कृतिक स्थिति के साथ-साथ प्रांतीय संस्कृतियों तथा परंपराओं के आलोक से सभी को परिचित कराये जाने की भी एक कोशिश है। इस कोशिश के लिए सभी छात्र-छात्राएँ साधुवाद एवं बधाई के पात्र हैं। 'समन्वय' छात्र-पत्रिका में छात्र-छात्राओं की स्वरचित रचनाओं के साथ-साथ वर्तमान शैक्षिक सत्र के दौरान आयोजित विभागीय निबंध लेखन प्रतियोगिताओं में प्रथम स्थान प्राप्त निबंध क्रमश: वरिष्ठ वर्ग में श्री प्रमोद कुमार यादव (पारंगत) द्वारा हिंदी में लिखित निबंध "शहरीकरण का मानव पर प्रभाव" तथा कनिष्ठ वर्ग में कु. रश्मिता पाणिग्रही (प्रवीण) द्वारा हिंदी में लिखित निबंध "भ्रष्टाचार वृद्धि के कारण एवं समाधान" भी प्रकाशित हैं। राष्ट्रभाषा हिंदी में निबंध लेखन के कौशल से दोनों ही छात्र-छात्राओं ने सभी छात्र-छात्राओं की प्रतिस्पर्धात्मक क्षमता का भी परिचय दिया है। विभागीय निबंध लेखन प्रतियोगिताओं में वरिष्ठ वर्ग तथा कनिष्ठ वर्ग के प्रथम पुरस्कार विजेता दोनों ही छात्र-छात्राएँ बधाई के पात्र हैं। 'समन्वय' छात्र-पत्रिका में सभी छात्र-छात्राओं की उनकी विषयात्मक एवं सामान्य जानकारी के लिए भारत की राजभाषा हिंदी तथा उसकी संवैधानिक स्थिति से अवगत कराए जाने हेतु "राजभाषा हिंदी की संवैधानिक स्थिति" विषयक शोध आलेख भी प्रकाशित है। निश्चित रूप से सभी छात्र-छात्राएँ इससे लाभान्वित होंगे। केंद्रीय हिंदी शिक्षण मंडल, आगरा के माननीय उपाध्यक्ष प्रो. अशोक चक्रधर जी के गरिमामयी संरक्षण, मार्ग दर्शन एवं नेतृत्व में कंद्रीय हिंदी संस्थान निरंतर विकासोन्मुख है। साथ ही माननीय उपाध्यक्ष महोदय की सोच केंद्रीय हिंदी संस्थान को कंप्यूटरीकृत किए जाने की तथा संस्थान के सभी सदस्यों को कंप्यूटर में दक्ष बनाए जाने की है। अध्यापक शिक्षा विभाग की ओर से आपका सादर आभार और कृतज्ञता। 'समन्वय' छात्र-पत्रिका के संरक्षक तथा केंद्रीय हिंदी संस्थान के निदेशक प्रो. मोहन जी, जिनके सतत प्रयासों से संस्थान अपने राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्वरूप, अपने गौरव तथा अपनी गरिमा को बनाए रखने में पूर्णत: अग्रसर है। अध्यापक शिक्षा विभाग आपका कृतज्ञ और आभारी है। अध्यापक शिक्षा विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. रामकल पाण्डेय, जो अब हमारे मध्य नहीं रहे, उनका सत्रावधि के दौरान असामयिक निधन हो गया। उनका मार्ग दर्शन हमेशा प्रेरक के रूप में साथ रहा। उनके मार्ग दर्शन की स्निग्ध छाया दुर्गम को भी सुगम बना देती थी। 'समन्वय' परिवार उन्हें सादर हार्दिक श्रद्धा सुमन समर्पित करता है। संस्थान के कुलसचिव डॉक्टर चंद्र कांत त्रिपाठी जी, जिनका सहयोग सभी कार्मिकों तथा छात्रों के मार्ग को सुगम बना देता है, उनके सहयोग और प्रयास से कठिनाइयाँ, कठिनाइयाँ नहीं रह जाती। उन्हीं की परिकल्पना एवं परामर्श से 'समन्वय' छात्र-पत्रिका का यह अंक आप लोगों के सम्मुख है। मैं उनके प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करते हुए उनका आभार व्यक्त करता हूँ। अध्यापक शिक्षा विभाग के सभी सहयोगियों तथा संस्थान के प्रकाशन विभाग के सभी सहयोगियों के प्रति भी मैं आभार व्यक्त करता हूँ, क्योंकि इन सबके सहयोग के बिना 'समन्वय' छात्र-पत्रिका का यह अंक आपके सम्मुख पहुँच पाना संभव नहीं था।
(राजवीर सिंह)
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