स्मृति के गलियारों से
अपने आविर्भाव से ही संस्थान सुनिश्चित क्षेत्रों में महत्वपूर्ण कार्य करता रहा है, कार्य की विशिष्टता के कारण भारत के सभी क्षेत्रों से चयनित मेधा यहाँ आकर्शित होती रही है। गौरव-गाथा यह है कि देश की सभी मुख्य भाषाओं के प्रतिभावान व्यक्ति यहाँ हिंदी अध्ययन, अध्यापन और अनुसंधान का कार्य करते रहे हैं। उपलब्ध उन्मुक्त वातावरण ने, संस्थान के सभी सदस्यों को, इच्छानुसार विकास करने का अवसर भी प्रदान किया। आगरा के एक सीमित स्थान से प्रारंभ होने के पश्चात, आज संस्थान की शाखाएँ न केवल भारतवर्ष में, बल्कि विदेशों में भी सक्रिय हैं। सीमित स्थान के साथ-साथ, उस समय की जनशक्ति भी सीमित ही थी। विशेषता यह थी कि श्रीगणेश में जुटे वे सभी समर्पित सदस्य, एकजुट होकर, यज्ञ अनुष्ठान की तरह कार्य करते रहे। आज संस्थान का जो स्वरूप हम देख रहे हैं, यह उन गिने-चुने व्यक्तियों के अथाह और निस्वार्थ परिश्रम का ही प्रतिफल है। उल्लेखनीय बात यह भी है कि संस्थान को दिशा देने वाले व्यक्तियों ने समय-समय पर उचित मार्गदर्शन देकर इसकी प्रगति को व्यावहारिकता प्रदान की।
उस समय यू.एस.एस.आर. सुगठित था। अड़ोस-पड़ोस के देशों पर भी उसका काफी प्रभाव था। मंगोलिया एक स्वतंत्र देश तो था, पर था सोवियत संघ के प्रभाव में। वहाँ से दो छात्र, न्यमदवा और सुखबात्र, हिंदी सीखने के लिए संस्थान में भेजे गए। अभी तक तो संस्थान को उन्हीं छात्रों का अनुभव था, जो थोड़ी-बहुत अथवा अच्छी अंग्रेजी जानते थे, लेकिन इन दोनों को अंग्रेजी का लेशमात्र ज्ञान भी न था। हाँ मंगोलयाई भाषा के अतिरिक्त रूसी भाषा जानते थे। | ||||||||||||
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