स.पू.अंक-13,अक्टू-दिस-2011,पृ-109
लेखकों एवं कवियों को कर्तव्य बोध कराते हुए कडवेल ने स्पष्ट किया कि – “साहित्य और शिल्प का मुख्य उद्देश्य है मनुष्य, समाज और सर्वोपरि जगत का परिवर्तन करना।” विभिन्न ग्रंथों एवं कवियों की विचारधाराओं से यह अति सरसता से स्पष्ट होता है कि हिंदी एवं असमिया भक्ति काव्य राष्ट्र के भावनात्मक पक्ष का पक्षधर रहा है। जब–जब राष्ट्र में निराशा, कुण्ठा, आदि विचारों का प्राबल्य हुआ तब–तब कवियों एवं लेखकों ने अपने अथक प्रयास से भाषा एवं विचार के माध्यम से राष्ट्र की समस्याओं से निपटने का सुझाव तथा विकास की परंपरा का सफल मंचन किया है। कवि दृष्टि बड़ी ही उपादेय होती है। इसी कारण मीरा, कबीर, रहीम, गिरधर, सूरदास, रसखान, श्रीमंत शंकरदेव, माधवदेव, आदि कवियों को आज भी हम राष्ट्र के नायक के रूप में देखते हैं एवं समाज के विकास की परंपरा में उनका सहयोग अक्षुण्ण है।
अध्यक्ष, हिंदी विभाग, भाषा-चिंतनहिंदी के प्रति दृष्टि - गांधी की
आजादी की लड़ाई को सफल नेतृत्व प्रदान करने वाले महामानव महात्मा गांधी हम सबके बापू हैं। पराधीनता की जंजीर से मुक्त करने के लिए पूरे देशवासियों को उन्होंने आह्वान किया था। अहिंसा के पुजारी गांधीजी की पुकार सुनकर समग्र भारतवर्ष के लोग उस लड़ाई में कूद पड़े थे। गांधीजी के जादूगरी प्रभाव से लाखों लोग एक ही तिरंगे झंडे के नीचे आकर ‘वंदे मातरम्’ की आवाज देने लगे। आज़ादी की इस लड़ाई के पीछे राष्ट्रभाषा हिंदी का ही सराहनीय हाथ है। स्वतंत्रता संग्राम के साथ–साथ राष्ट्रभाषा आंदोलन भी शुरू हो गया था। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान एक राष्ट्रभाषा की आवश्यकता का अनुभव किया गया था। सबको एकता की रस्सी से बांधने के लिए एक सामूहिक भाषा की आवश्यकता हुई। यह सामूहिक भाषा हिंदी के सिवा और कुछ नहीं हो सकती। इसी कारण अंग्रेज़ी भाषा के विरोध में राष्ट्रभाषा आंदोलन जोरदार रूप में समग्र भारत में फैलने लगा। महात्मा गांधी के नेतृत्व में राष्ट्रभाषा आंदोलन भी तीव्र गति से आगे बढ़ने लगा। विदेशी वस्तु आंदोलन के साथ–साथ विदेशी भाषा वर्जन आंदोलन भी शुरू हो गया। अंग्रेज़ों को हटाने के लिए अंग्रेज़ी हटानी पड़ेगी – इस बात पर गांधीजी ने बहुत जोर दिया। गांधीजी ने यह दिखाने की कोशिश की कि अंग्रेज़ों की हर वस्तु की तरह उनकी भाषा भी हमारे देश के लिए उपयोगी नहीं है। |
संबंधित लेख
क्रमांक | लेख का नाम | लेखक | पृष्ठ संख्या |