स.पू.अंक-13,अक्टू-दिस-2011,पृ-127
उत्तर–पूर्व की भाषाओं का अन्य भारतीय भाषाओं से गहरा संबंध है। निश्चय ही उसका भी अध्ययन हो सकता है कि उत्तर–पूर्व की भाषाएँ भारतीय आर्य भाषाओं को प्रभावित करती हैं या नहीं। पहचानने के प्रयास हुए हैं कि उत्तर–पूर्व की भाषाओं के बीच काफी भिन्नता है. कई बार एक गाँव के लोग दूसरे गाँव के लोगों की भाषा समझ नहीं पाते। इसके बावजूद. इनके बीच भी भाषा तत्वों का पर्याप्त विनिमय हुआ है, क्योंकि इनके जीवन–तत्वों में प्राचीन काल से संबंध है। इसमें संदेह नहीं कि भारत के उत्तर–पूर्व की भाषाओं का संस्कृत से भाषावैज्ञानिक संबंध प्राचीन काल से है और उनका संबंध हिंदी से भी है। उदाहरण के तौर पर नागालैंड की आम बोलचाल की भाषा नागामीज में हिंदी के शब्दों का धड़ल्ले से प्रवेश हुआ है। इसमें मौसम, प्रार्थना, अंग आदि कई शब्द नागामीज में हैं। हिंदी फिल्मों और गानों ने भारतीय भाषाओं की संरचना को खासकर बोलचाल के स्तर पर बहुत प्रभावित किया है। इस विकास को भी पहचानने की जरूरत है। दरअसल दुनिया भर में भाषाओं का चेहरा बदल रहा है। हमारे ज्ञानियों के समाज में शुरू से ही फर्क और पृथकता का अध्ययन औपनिवेशिक असर के कारण लोकप्रिय ज्यादा रही है। भाषावैज्ञानिक क्षेत्र में व्यतिरेकी अध्ययन जितने हुए हैं। सादृश्यमूलक अध्ययन उसकी तुलना में काफी कम हैं। इससे यह झलकता है कि भारतीय भाषाओं के बीच भेद दिखाने वाले अध्ययन के मामले में उपनिवेशवादी सोच के विद्वानों ने बड़ी कर्मठता का परिचय दिया है। पर संबंध दिखाने के मामले में भारतीय विद्वानों ने भाषाविज्ञान की शक्ति का बहुत थोड़ी इस्तेमाल किया है। यह स्थिति जितनी चिंताजनक है, उतनी ही चुनौतीपूर्ण भी है। भारतीय भाषा वैज्ञानिक इस चुनौती को स्वीकार कर भारत के उत्तर–पूर्व की भाषाओं में एवं अन्य भारतीय भाषाओं में समानता देखने का प्रयास करें, तो आज अलगाव की भयावह स्थिति से उबरा जा सकता है। क्या खासी भाषा का ‘जंजार’ और हिंदी का ‘जंजाल’ समानता का स्पष्ट संकेत नहीं है? प्रयास करें, सफलता मिलेगी। संपर्क सूत्र: पूर्वोत्तर भारत में हिंदी : विकास की संभावनाओं का मूल्याँकन
विविधता में एकता भारतवर्ष की प्रमुख विशेषता है, यहाँ एकता धर्म, संस्कृति, राजनीति आदि में निहित है तो विविधता इसकी बहुभाषिकता में परिलक्षित होती है। वर्तमान समय में हिंदी विश्व की तीसरी सबसे बड़ी भाषा है। यद्यपि भारत की अधिकांश भाषाएँ लगभग एक सीमित क्षेत्र में व्याप्त हैं, जिनका प्रयोग अपने क्षेत्र से बाहर निकलते ही निरर्थक होने लगता है। हमारे देश में लगभग 171 भाषाएं एवं 544 बोलियां अस्तित्व में हैं। अनेकता में एकता के तार पिरोने के लिए हिंदी को राष्ट्रभाषा का पद प्रदान किया गया। भारत की अनेक भाषाओं में केवल हिंदी ही ऐसी भाषा है जिसको स्वाभाविक रूप से अपने क्षेत्र के बाहर विकसित होने का अवसर मिला है। |
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