स.पू.अंक-13,अक्टू-दिस-2011,पृ-162
समालोचनहिंदी यात्रा साहित्य को नागार्जुन का प्रदेय
हिंदी यात्रा साहित्य का अनुशीलन करते समय यह देखा गया है कि जब स्वातंत्र्योत्तर हिंदी यात्रा साहित्य की चर्चा का अवसर आता है तो प्रकाशित पुस्तकों की सूची संलग्न करते हुए कुछ विशिष्ट लेखकों के नामों का उल्लेख करते हुए विवेचना की शुरूआत देखी जाती है। इनमें रामवृक्ष बेनीपुरी, सेठ गोविंद दास, यशपाल, रामधारी सिंह ‘दिनकर’, डॉ. भगवतशरण उपाध्याय, मोहन राकेश, अज्ञेय, निर्मल वर्मा, डॉ. नगेन्द्र, प्रभाकर माचवे, विष्णु, प्रभाकर, कमलेश्वर, गोविंद मिश्र, डॉ. धर्मवीर भारती, राजेन्द्र अवस्थी, रामदरस मिश्र, कन्हैयालाल नंदन, नरेश मेहता, अमृतलाल नागर आदि विशेष रूप से उल्लिखित होते हैं। लेकिन नागार्जुन के नाम का उल्लेख नहीं दिखता – ढूंढने पर किसी शोध प्रबंध में भले ही दिख जाए, उसमें भी संभावना यही है कि वह अप्रकाशित शोध प्रबंध नागार्जुन के व्यक्तित्व और कृतित्व तक सीमित हो। हिंदी साहित्य का इतिहास लिखते समय यात्रा–साहित्य विधा के प्रसंग में नागार्जुन के नाम का उल्लेख न हो पाना त्रुटि या उपेक्षा को दर्शाता है। इस ओर ध्यान दिलाए जाने की आवश्यकता है। नागार्जुन के यात्रा वृत्तान्तों पर विमर्श करते समय कुछ बातें तुरंत ध्यान में आ जाती हैं। पहली तो यही कि मैथिली में वे ‘यात्री’ उपनाम से लिखते रहे। अज्ञेय ने अपने लिए यायावर शब्द का प्रयोग सीमित रूप में किया हैं, वहीं नागार्जुन ने अपने व्यक्तित्व के संदर्भ में ‘यात्री’ या ‘घुमक्कड़ मन’ पदबंध का प्रयोग किया है। नागार्जुन के लिए यह उपनाम सार्थक भी था। उन्होंने कैलाश, तिब्बत के महाविहारों, वितस्ता, डल झील, सिंध से लेकर मिजोरम और श्रीलंका तक की यात्राएँ की।जिस तरह नागार्जुन की डायरी लघुतम आकार में है और काल के एक अल्पतम अंश में लिखी गई है उसी तरह यात्रा–वृत्तांत भी गिनती के ही हैं। लगता है, यात्री का मन इस विधा में रमा नहीं। उन्होंने जितने विस्तृत देश–काल में यात्राएँ की थीं, उसे देखते हुए यही निष्कर्ष निकाला जा सकता है। फिर भी इससे उनके यात्रा–वृत्तांतों का महत्व कम नहीं हो जाता – अकाल्पनिक गद्य विधाओं में यात्रा–वत्तांतों की विरलता को देखते हुए तो और भी नहीं। नागार्जुन के यात्रा–वृत्तांत स्थायी महत्व के हैं। उसकी अपनी विशेषताएँ हैं। वृत्तांतों में यात्रा की उन्मुक्तता और रोमांच को परिलक्षित किया जा सकता है। |
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