स.पू.अंक-13,अक्टू-दिस-2011,पृ-169
अंत में यही कहा जा सकता है कि यात्री सच्चे थे। उनके लिए यात्रा–साहित्य विधा के क्षेत्र में प्रवेश करना स्वाभाविक था। हालांकि उनमें इस विधा के प्रति अपेक्षित समर्पण का कमी दिखती है, फिर भी हिंदी यात्रा–साहित्य को समृद्ध करने में उनका योगदान किसी भी साहित्यकार से कम नहीं है। नागार्जुन के व्यक्तित्व को समग्रता के लिए ये यात्रा–वृत्तांत अनिवार्य हैं। ये यात्राएँ यात्री के हृदय को मुक्तावस्ता में लाती थी, सृजन के लिए प्रेरित करती थी। यात्री की रचनाओं में इन यात्राओं का उपयोग हुआ है। यात्राओं में नागार्जुन का भारत भूमि के प्रति प्रेम, मनुष्य के प्रति लगाव, ज्ञान–पिपासा, संस्कार, खोखलेपन के प्रति विरक्ति, प्रकृति–प्रेम, व्यंग्यकार–विनोदी स्वभाव, आत्म समीक्षा, नागरी लिपि एवं राष्ट्रभाषा हिंदी तथा संस्कृत जैसे विषयों पर स्पष्ट दृष्टि जैसी अनेकानेक बातें उभर कर आई हैं। इस दृष्टि से ये वृत्तांत स्थायी महत्व के माने जायेंगे। यही इनकी प्रासंगिकता है।
संपर्क सूत्र: स्वातंत्र्योत्तर हिंदी कविता में बदलती प्रणयानुभूति
साहित्य में प्रणयानुभूति सदैव से ही विद्यमान रही है, भले ही समयानुसार प्रणय की अभिव्यक्ति का तरीका बदलता गया। कविता के विकास के साथ प्रणयानुभूति में परिवर्तन कविता के निरन्तर विकास की सूचना देते हैं। भक्तिकाल प्रणय संबंधी अनुभूति ईश्वर के प्रति समर्पित थी। ईश्वर–भक्ति संबंधी प्रणय–सौन्दर्य ही उस समय की रचनाओं में सौन्दर्यबोध उत्पन्न करता है। रीतिकाल में यह सौन्दर्यबोध प्रेम और काम की स्थूल अभिव्यक्ति में मिलता है। छायावाद में प्रेम और काम के सूक्ष्म सौन्दर्य को स्थान मिला। यहाँ प्रेम की सबसे सुन्दर अभिव्यक्ति हुई है। कविता की धारा जब बहती हुई नयी कविता में आई तब अपने विशेष अन्दाज में प्रकट हुई। आधुनिक कविता में प्रणय, काम और नारी के प्रति दृष्टिकोण बदला हुआ दिखाई देता है। यहाँ पर प्रेम इन दोनों के सह–अस्तित्व को नये कवियों ने सहज स्वाभाविक दृष्टि से देखा है। |
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