स.पू.अंक-13,अक्टू-दिस-2011,पृ-17
आम आदमी की पीड़ा ही भूपेन हजारिका के गीत थे
ठहर–सा गया है ब्रह्मपुत्र का प्रवाह / लोहित का किनारा निस्तब्ध है / सदियों से चला यायावर / खामोश हो गया मुंबई के सागर किनारे / रो रहा है बूढ़ा लुइत / कौन देगा उसके विस्तार को धिक्कार / जो नैतिकता को ध्वस्त होता देखकर भी / प्रवाहमान है / खाद्यविहीन, वस्त्रहीन खेतिहर / की हालत से विकल / मानवता के पक्ष मनुष्य–मनुष्य के लिए का संदेश देने वाला यायावर / थक सकता है / रुक नहीं सकता / वे गुजरे नहीं, विश्राम कर रहे हैं / अगली यात्रा के लिए / उसे जीभर सो लेने दो / कई दशकों से सोया नहीं था यायावर / जब उठेगा तो जन सरोकार के गीत गाएगा, मानवता की बाँसुरी बजाएगा / बिहू के गीतों पर सबको झुमाएगा / यह सच है कि / अब दिल हुम–हुम नहीं करता / दिल रोता है उनकी याद में / लेकिन वह फिर आएगा / नए अवतार में / वह इतिहास है / वह वर्तमान है / वह भविष्य है / वह आएगा / नई पहचान लिए...। प्रख्यात गायक और संगीतकार डॉ. भूपेन हजारिका एक युगपुरूष थे। उनका नाम ही उनका सबसे बड़ा परिचय है। इसलिए उनका परिचय देना सूर्य को दिया दिखाने के बराबर है। यह अलग बात है कि हर कोई उन्हें उनके अलग–अलग गुणों के रूप में जानता है। उनका रचना संसार महाबाहु ब्रह्मपुत्र की तरह विशाल और व्यापक है। उन्होंने कई कालजयी गीत और कविता समाज को दी है। लेकिन इनका सबसे ज़्यादा दिखने वाला पक्ष उनकी आवाज़ है। उनके गाए गीत पूर्वोत्तर के लिए धरोहर हैं, क्योंकि उनमें पूर्वोत्तर की भावना, आवेग संकट, समय और संवेदना की अभिव्यक्ति है। उनके गीतों का कथ्य समाज को झकझोरता और पुचकारता रहा है। सामाजिक यथार्थ को उकेरते उनके गीत लोगों को उद्वेलित करते रहे हैं। इसलिए तो कम से कम तीन पीढ़ी के लोग उनके गीतों के साथ जीते रहे हैं और यही वजह है कि गत 5 नवंबर को उनके निधन के बाद उनके अंतिम दर्शन के लिए जनसैलाब उमड़ पड़ा, क्योंकि उनके गीतों के संदेश और उसमें छिपी भावना हर किसी को स्पंदित करती रही है। उनके गीतों में पूर्वोत्तर का समाज जुड़ा हुआ महसूस करता है। हर वर्ग और हर समुदाय के लिए उनके गीत हैं। गरीबी का मार्मिक चित्रण है तो असमिया जाति की व्यापकता का वर्णन भी। उनके गीतों में आम आदमी की पीड़ा या भावना परिलक्षित होती रही है। इसलिए उनके गीत हर किसी को अपने गीत लगते हैं। इसलिए जब उनका निधन हुआ तो हर किसी को लगा कि उनका कोई अपना चल बसा और उसके अंतिम दर्शन के लिए लोग उमड़ पड़े। जो नहीं आ पाए, वे चैनलों से चिपके रहे, आँसू बहाते रहे। लाखों लोगों की उमड़ी भीड़ इस बात की गवाह है कि उनके चाहने वालों का संसार कितना विशाल है। इतनी भीड़ शायद ही किसी कलाकार की मौत पर जुटी होगी। यह असमिया समाज का सबसे सुखद पक्ष है कि वे अपने वैसे कलाकार को किस हद तक चाहते हैं, जो उनके लिए गीत लिखता है। इसमें तो दो राय है ही नहीं कि वे सरोकार से जुड़े कलाकार थे। आम आदमी के प्रति उनका सरोकार उनके गीतों के अलावा उनकी रचनाओं में भी दिखता है। |
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