स.पू.अंक-13,अक्टू-दिस-2011,पृ-179
16. लटकी हुई शर्त : दलित संचयन, प्रहलाद चन्द्र दास, पृ. 78। जनजातीय हिंदी उपन्यास : परिचयात्मक विवेचन
साहित्य की सशक्त विधा का नाम उपन्यास है, जिसके माध्यम से मानवीय मनोविज्ञान का सम्प्रेषण सहज रूप से दिया जाता रहा है। इस विधा के द्वारा सांस्कृतिक एवं सामाजिक क्रांतियों को जन्म मिला है तथा सृजन को अभिव्यक्ति के लिए विस्तृत आकाश। उपन्यास एक व्यक्ति का जीवन है, एक परिवार का संघष है, एक समाज का यथार्थ रूप तथा संस्कृति का हक है, साथ ही कला का एक उत्कृष्ट स्वरूप है। साहित्य की अन्य विधाओं की तुलना में इस विधा का व्यापक प्रसार हुआ है एवं शैली को विकसित रूप मिला है। उपन्यास वर्तमान जीवन की जटिलताओं और सुक्ष्मता को सही रूप में अभिव्यक्ति देने वाली एकमात्र विधा है। हिंदी उपन्यास के विभाग का क्षेत्र अंग्रेजी एवं बंगला उपन्यासों को दिया जा सकता है। हिंदी उपन्यास का आरंभ उपदेश, नीति और सुधारवादिता से हुआ था और आज वह कृषक श्रमिक़ मध्यम वर्ग तथा समाज के अन्य दलित और उपेक्षित वर्गों के चिराग से विकसित हो रहा हैं। जनजाति शब्द दो शब्दों जन और जाति से मिलकर बना है, इसका शाब्दिक अर्थ है – जंगली और पहाड़ी स्थानों में रहने वाली जातियाँ। दुनिया के लगभग सभी देशो में जनजातीय समुदाय का अस्तित्व है। |
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