स.पू.अंक-13,अक्टू-दिस-2011,पृ-218
एन. कुंजमोहन – जहाँ तक पुरस्कार की बात है तो लेखक को जब पुरस्कार मिलता है तो खुशी मिलती ही है लेकिन मेरा मानना है कि पुरस्कार लेखक को संबंधों के आधार पर नहीं रचना के आधार पर मिलना चाहिए। मुझे इलिशा अमगी महाओ में साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला बहुत अच्छा लगा। लोगों ने माना कि सही पुरस्कार मिला है। आपसे एक बात कहूँ, पुरस्कार जवानी में मिले तो कुछ और अनुभव होता है ढलती उम्र में मिले तो बात बदल जाती है उसका अहसास अलग होता है। इलिशा अमगी महाऊ में मुझे जो पुरस्कार मिला वह साहित्य अकादमी का दूसरा पुरस्कार था। इसके पहले ‘पाचा’ को मिल चुका था। मेरा मतलब पुरस्कार सही समय में मिलना चाहिए। इस संवाद के अंत में मेरा मन था कि उनसे युवा पीढ़ी के लेखकों के लिए कुछ कहने का आग्रह करूँ। मैंने थोड़ा घुमाकर बात छेड़ी और कहा कि इन दिनों जो युवा लेखक रहे हैं उन्हें किस बात का ध्यान रखना चाहिए। मेरे बात के उत्तर में वे हँसने लगे और बोले मुझे मसीहा मत बनाइए। एक पाठक के तौर पर आप खुद लेखकों से कहिए कि लिखने की भूख के चलते न लिखें। अपने समय की सच्चाई और जरूरत को समझकर लिखे। वैसे मेरा मानना है कि किसी भी लेखक को दूसरे भाषा के साहित्य को गहराई से पढ़ना चाहिए, तभी उन्हें लिखने की दिशा मिलेंगी और वे अपना मूल्यांकन भी कर पाएँगे। ऐसा न हो कि लिखने के लिए तो निकल पड़े हैं लेकिन दूसरे भाषाओं के साहित्य की बात तो दूर अपने भाषा के साहित्य से भी कोई रिश्ता न हो।
सिंङजमै टॉप लैकाइ, टॉप लैख पुस्तक-समीक्षाअज्ञेय के रचना कर्म का एक अनछुआ पहलू : अज्ञेय और पूर्वोत्तर भारत
यद्यपि अज्ञेय के व्यक्तित्व और रचना–कर्म पर निरंतर विचार–विमर्श होता रहा है किन्तु उनके व्यक्तित्व और रचना–कर्मके इतने स्तर और आयाम है कि हमें हर बार एक ऐसा नया परिप्रेक्ष्य मिल जाता है जिस पर चर्चा करना आवश्यक हो जाता है। पूर्वोंत्तर भारत से अज्ञेय को जोड़ कर देखना एक ऐसा ही परिप्रेक्ष्य है जिस पर चर्चा करना निश्चय ही एक गंभीर अभाव की पूर्ति करता है। डॉ. रीता रानी पालीवाल पहलू हमारे सामने आता है। |
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