स.पू.अंक-13,अक्टू-दिस-2011,पृ-29
ऐसे ही गूढ़ार्थ में समूह या समष्टि का परिचय मिलता है। इस तरह से समूह के हित के लिए समूह को जगाने का काम डॉ. हजारिका ने किया है। वास्तव में ऐसी ही चेतना में मानवता के उच्च आदर्श आलोकित होते हैं। इसके साथ-साथ गीतकार का संदेश है कि गरीबी और निराशा के कुहाँसे से निकलने की कुँजी अपने ही हाथों से पाने की कोशिश करें। हाथों से हाथ मिलते हैं, तब अंधेरे के ख़िलाफ़ लड़ने की बेजोड़ ताकत बनती है। वे मनुष्य को उस स्तर पर देखना चाहते हैं, जहाँ मनुष्य, मनुष्य के रूप में शान से जी सके। जब सबका मूल एक ही भूमि, जल, संसार है तो मनुष्य क्यों एक नहीं हो सकते। नितान्त सरल शब्दों में विश्वमानवता के एकीकरण की यह सार्वभौम दृष्टि डॉ. हजारिका को श्रेष्ठ कलाकार सिद्ध करती है। संपर्क सूत्र- असम के सांस्कृतिक दूत भूपेन हजारिका
असम के सांस्कृतिक परिदृश्य के सबसे जाज्वल्यमान नक्षत्र भूपेन हजारिका को संगीत का संस्कार उन्हें अपनी माँ शान्तिप्रिया से मिला, जो बचपन में उन्हें लोरी गाकर सुनाया करती थी। आदिवासी संगीत की लय से भी संगीत के प्रति उनका रूझान बढ़ा था। दूसरी ओर अध्यापक पिता नीलकांत ने उन्हें बचपन से ही शिक्षा के महत्व से परिचित कराया। उनके पिता 1929 में गुवाहाटी के निकट भरालुमुख नामक स्थान में आ गये थे। बालक भूपेन का बचपन यहीं बीता। 1932 में वे अपने परिवार के साथ धुबरी और फिर 1935 में तेजपुर चले गये। दस वर्ष की उम्र तक पहुँचते-पहुँचते भूपेन गीत लिखने लगे थे। लगभग उसी समय उन्होंने एक सार्वजनिक सभा में अपनी माँ का सिखाया 'बरगीत' गाया। यहाँ ज्योति प्रसाद आगरवाला और विष्णु प्रसाद राभा जैसी बड़ी हस्तियाँ भी मौजूद थीं। असमिया संस्कृति के उन शिखर पुरूषों से संपर्क स्थापित होने के साथ ही उनकी कला-यात्रा की शुरूआत हुई। ज्योति प्रसाद आगरवाला की फ़िल्म 'इन्द्रमालती' में गीत 'काखते कोलोसी लोई' ने उन्हें स्टार बना दिया। परन्तु अपनी ख्याति से अप्रभावित हजारिका स्वाधीनता संग्राम की ओर आकर्षित हुए। वे बुद्धिजीवियों से घिरे रहते और स्वाधीनता संग्राम सेनानियों के साथ गुप्त बैठकों में शामिल होते रहे। कहीं न कहीं उनके भीतर वह सामाजिक प्रतिबद्धता जन्म ले रही थी, जो बाद में उनकी फ़िल्मों और गीतों में अभिव्यक्त होती दिखाई देती है। शिक्षा के साथ उनकी संगीत साधना चलती रही। कुछ समय के लिये उन्होंने आकाशवाणी में प्रोड्यूसर के रूप में कार्य किया। 1949 में वे उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिये अमरीका रवाना हुए। बीच में वे फ्रांस में रूके ताकि नये देशों को देख पायें। प्रख्यात चित्रकार पिकासो से मिलने की उन्हें तीव्र इच्छा थी। किसी ने उन्हें बताया कि पिकासो भोर में चार बजे अपने दोस्तों के साथ टहलने निकलते हैं। सचमुच भोर में पिकासो से उनकी मुलाकात हुई। उन्होंने पिकासो से कहा, 'सर, आज मेरे जीवन का सबसे अच्छा दिन है।' |
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