प्रात: स्मरणीय भूपेन हजारिका का सबसे बड़ा अवदान यह है कि उन्होंने असम के बारे में इस प्रचलित अवधारणा को तोड़ा और यह स्थापित किया कि असम सांस्कृतिक वैभव का क्षेत्र है, जिसके मूल में मानवीय संवेदना, सौहार्द एवं आत्मीयता निहित है। भूपेन हजारिका असम के आधुनिक युग के सबसे बड़े सांस्कृतिक दूत थे, जिन्होंने भारत में ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में असम का एक नया रूप प्रस्तुत किया।
संपर्क सूत्र-
विभागाध्यक्ष, हिंदी विभाग,
पूर्वोत्तर पर्वतीय विश्वविद्यालय
शिलांग (मेघालय) 793022, मो. 09436163149
असम रत्न डॉ. भूपेन हजारिका की कुछ अनमोल रचनाएँ
(एक)
- भाषांतरण - सुश्री नन्दिता दत्त
- मूल - माइ एटि यायावर (जाजाबर)
मइ एटि जाजाबर
धरार दिहिङे दिपाङे लवरो
निबिचारि निजा धर।
मइ लुइतर परा मिछिछिपि हई भल्गार रूप चालो
अटोवार परा अष्ट्रीया हई पेरिछ सावटि ल’लो
मइ इलोरार परा पुरणि रहण चिकागोले–कढ़ियालो
गालिवर श्वेर दुखेम्बेर मीनारत सुना पालो
मार्क टोवेनर समाधित बहि गर्कीर कथा क’लो
बारे बारे देखो बाटर मानुहो आपोन हइछे बंर सेये मइ
जाजाबर।
बहु जाजाबर लक्ष्यबिहीन
मोर पिछे आछे पण
रङर कनि जंतेइ देखिछों
भगाइ दियार मन।
मइ देखिछो अनेक गगणचुम्बी अटुलिकार शारी
तार छाँतेइ देखिछो कतना गृहहीन नर–नारी
मइ देखिछो किछु घरर सम्मुख बागिचारे आछे भरि
आरू देखिछो मरहा फुलर पापरि अकालते सरा परि
बहु देशे, देशे गृहदाह देखि चिन्तित हुउँ बर
मनर मानुह बहुतेइ देखो घरते हइछे पर
सेये मइ जाजाबर।
(रचना, कलकत्ता, सन 1959)
- भाषांतरण - मैं एक यायावर
मैं एक यायावर
धरती के चारों ओर घुमूँ
नहीं ढूँढा अपना घर
मैंने ब्रह्मपुत्र से मिसीसिपी होकर बोल्गा का रूप निहारा
अटोवा से अस्ट्रीया होकर पेरिस को अपनाया
मैंने एलोरा से पुराने रंगों की शिकागों तक बहन किया
गालिब के शेर को दुखम्बेर के मीनार में सुना
मार्क टोवेन की समाधि में बेठकर गोर्की की बातें कही
हर बार महसूस करूँ कि राहों में
मिलने वाले भी अपने बन जाते हैं। इसीलिए मैं यायावर।
अनेक यायावर लक्ष्यहीन होते हैं
पर मेरे मन में है प्रण
रंगों के किरण जहाँ देखा
बाँट देने का है मन
मैंने देखा है कई गगनस्पर्शी प्रासादों की पक्तियाँ
उसकी छाँवों में देखा है कई सारे बेघर नर–नारियों को -
मैंने देखा है कुछ घरों के आंगन हैं बगीचों से भरे
और देखा है सुखे फूलों के पंखुड़ियाँ झर गई हैं असमय
अनेक देशों के गृहक्रन्दन को देख चिंतित होता हूँ बहुत
बहुतों को देखा, घर में ही हुए वे पराये इसीलिए मैं यायावर।
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