स.पू.अंक-13,अक्टू-दिस-2011,पृ-37
डॉ. भूपेन हाजरिका का निधन...कलाक्षेत्र की एक अपूर्णीय क्षति
मुंबई के कोकिलाबेन धीरूभाई अंबानी अस्पताल में भूपेन दा कई महीनों से भर्ती थे। समाचार पत्रों से उनकी सेहत के बारे में बीच–बीच में पता चलते रहता था। मगर लम्बी बीमारी के दौरान उस दिन भूपेन दा की मृत्यु की खबर हम देशवासी के लिए किसी सदमे से कम न थी। असम ही नहीं बल्कि पूरे देश ने एक होनहार गायक संगीतकार को भी खो दिया था। भूपेन दा चले गए इस खबर ने असम के संगीत प्रेमी, कलाकार सभी को मर्माहत कर दिया था। सभी शोकाकुल हो गए। किसी को विश्वास ही नहीं हो रहा था कि अब यह कंठ हमेशा के लिए खामोश हो चुका हैं। अब वह दर्दीला गाना कौन लिखेगा, कौन गायेगा ? उनकी मृत्यु पर असम सरकार ने तीन दिन की राजकीय छुट्टी की घोषणा की। मुंबई में उनकी मृत्यु के समय आसाम हाउस के लोग़ उनके रिश्तेदार, कल्पना लाजमी, टीना मुनीम अम्बानी और इला अरूण उपस्थित थे। भूपेनदा जन गायक थे। इसकी झलक उनके विख्यात गाने “मानुहे मानुहर बाबे अकननो किय ना भाबे” (इंसान इंसान के लिए क्यों नहीं सोचते) में देखने को मिलती हैं। उनके हर एक गाने में इतना दर्द और अर्थपूर्ण भाव रहता है कि ऐसा लगता हैं वह गीत स्वयं हमारे लिए लिखा गया हो। तभी तो उनके चले जाने की खबर ने असम में शोक की लहर ऐसे उमड़ पड़ी कि उनके अंतिम दर्शन के लिए लोग दूर–दूर से आकर उन्हें श्रद्धांजलि देने पहुंचे। मुंबई से उनका पार्थिव शरीर जब गुवाहाटी लाया गया तो लोगों के अंतिम दर्शनार्थ गुवाहाटी जज खेल मैदान पर तीन दिन तक रखा गया। उनके अंतिम दर्शन करने लोगों का ताँता बना रहा। लोगो ने श्रद्धांजलि दी। तीन दिन तक रात–दिन लगातार उन्हें श्रद्धांजलि देने दूर–दूर से लोग आये जिसे देश के अनेक न्यूज चेनलों ने लाइव दिखाया और गाना भी बजता रहा। हृदय स्पर्शी उनके गाने सुनकर और उन्हें चिरनिद्रा में देख कर दिल फटने लगता था और स्वत: ही आँखों से अश्रुधारा बहने लगती थी। इतना प्यार। इतने आत्मीयता से वह लोगों से मिलते थे कि वह जन–जन के हृदय में बस गए थे। उनका वह मशहूर गाना – मइ जेतिया एई जीवनर माया एरी गुसी जाम...आशा करू (मैं जब इस जीवन का मोह छोड़कर जाऊँगा...उम्मीद करता हूँ...) हृदय स्पर्श करता हैं। वे जन गायक थे बच्चे, बूढे, जवान हर एक के दिलो में बसे हुए है। अपनी भाषा अपना देश और कला साहित्य से प्रेम करने वाले भूपेन दा आज हमारे बीच नहीं रहे। लेकिन उनके द्वारा लिखी गयी कविता, गीत और उपन्यास ने उन्हें अमर बना दिया। उनकी मृत्यु से संगीत जगत में अपूर्णीय क्षति हुई हैं। भूपेन दा की अंतिम विदाई में सम्मिलित हुए लोगों की इतनी भीड़ असम इतिहास में पहली थी। लोगों ने कहा ऐसी भीड़ राष्ट्र पिता महात्मा गाँधी की मृत्यु के वक्त हुई थी। असम के मुख्य मंत्री श्री तरूण गोगोई भी उन्हें श्रद्धांजलि देने पहुँचे। लोगों की भावना का ख़्याल रखते हुए उनकी मृत्यु के पाँचवे दिन पर पूरे राजकीय सम्मान के साथ वैदिक मंत्रोचार के बीच उनकी अंतिम विदाई संपन्न हुई। भूपेन दा के अंतिम यात्रा जालुकबाड़ी स्थित गुवाहाटी युनिवर्सिटी के समाधि स्थल पर ख़त्म हुई। जहाँ हज़ारों चाहने वालों को छोड़ भूपेन दा पंचभूत में विलीन हो गए। गुवाहाटी यूनिवर्सिटी से उनका बहुत लगाव था। न जाने कितने गाने उन्होंने यहाँ बैठकर लिखे थे। तभी तो यूनिवर्सिटी का 30 साल पुराना चन्दन का पेड़ उन्हें अर्पित किया गया। देखते–ही देखते एक सूर्य का अस्त हो गया। भूपेनदा की सभी चीजों का संरक्षण करने का फैसला सरकार ने किया है। उनके पैरों के निशान का भी संरक्षण किया गया हैं। संपर्क सूत्र : |
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