स.पू.अंक-13,अक्टू-दिस-2011,पृ-44
जल–देवता ‘बीरो तापू’ ने उसके रूप की प्रशंसा सुनी। वह जायीबोने से विवाह का प्रस्ताव रखने के लिए जल–संसार से स्थल पर आ गया जल देवता को उस से प्रेम हो गया। ‘दिदुकुबो (बरसात का युवराज)’ भी जायीबोने से अपना रिश्ता जोड़ने धरती पर उतरा। जायीबोने उस से भी प्यार करने लगी। पर जायीबोने दिदुकुबो को धोखा देकर जल–संसार में बीरोतापू के साथ भाग गई। दिदुकुबो क्रोध से गरज उठा। वह जायीबोने से बदला लेने के लिए उपाय सोचने लगा। उसके क्रोध से बिजली कौंध गई। काली घटा छा गई, जिससे पृथ्वी पर अंधेरा छा गया। दिदुकुबो ने नदी से वज्रपात कराया। सब ओर से हारकर वे जाने लगे। गालो का कहना है कि एक नेवला जाति जिसे ‘होथिन’ कहते हैं ने ही बीरो तापू और जायीबोने को मारने वाले एक विषैले पेड़ के बारे में बतलाया। आज भी वह पेड़ अरूणाचंल के जंगल में पाया जाता है। यहाँ की कुछ जन–जातियाँ जब भी नदी में मछली मारती हैं तो उसी वृक्ष के फल को इकट्टा करते हैं। उस जहरीले फल को पत्थर से रगड़–रगड़कर (या कूट–कूटकर) पानी में डाल देते हैं। कुछ क्षण के अन्दर मछलियाँ तड़प–तड़पकर मरने लगती है। विरही दिदुकुबो ने ‘दोका–मुरा’ नामक विषैले फल इकट्ठे किये। उन्हें बीरो तापू तथा जायीबोने वाली नदी में डाल दिया। नदी में जहर फैल गया तो दोनों मर गये। इस प्रकार दिदुकुबो ने अपने अपमान का बदला ले लिया। धरती की राजकुमारी और जल के राजा के वियोग में संसार में प्रलय सृष्टि हो गई। नद–नदी, पर्वत –चट्टान और पेड़–पौधे सब नष्ट हो गये। इस प्रकार प्रलय में कितने हिरन अपनी हिरनी से बिछड़ गये। कितने पशु–पक्षी, नद–नदी, पेड़–पौधों का नुकसान हो गया। कितने पर्वत–श्रृंग टूट गए। संसार में रहना कठिन हो गया। चारों ओर दु:ख का सागर लहराने लगा। इस प्रकार जायीबोने की ग़लती पर सृष्टि का नाश हो गया। संपर्क सूत्र : लोकगीतकोम जनजाति के पारंपरिक गीत
(1) रैकनीक गीत |
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