गगन तले हरबोले – यश – कीर्ति उनकी,
सर्वोच्च महान् नेत्री,
होकर निश्चिंत, दिवस–बेला,
अपने आँगन में बुनती अग्र–योजना।
उस अबोध सशस्त्र सैनिक ने,
अर्पण किया उसने भयावह अभिनंदन,
दाग दिया उसने ताँबे की गोली,
हुए लहूलुहान वस्त्र जैसे बेकार थे।
स्वस्थगृह में अनेकों औषधि सहित
वापस न ला सके उनका जीवन
सभी भयभीत, सभी तनहा–बेचैन,
चौंकाने वाली खबर आई– कितनी असहनीय।
रेडियो सुना, टी.वी. देखा मैने,
लहरें गूँज उठीं बेचैनी मातम की,
उन्हें लेटाया तीन मूर्ति भव्य महल के तल पर
साहस नहीं मुझमें कि देख सकूँ उस पर उनका सोना।
तन पर भले खिले सुंदर फूल हों,
अंतर्मन में आघात, अश्क न सूख सके,
भयावह अग्नि संस्कार में प्रज्वल्लित राख बनने,
गँवारा नहीं मुझे, उन सरीखे मनोहर चेहरे को।
प्रत्येक जाति की माता–पिता श्रीमती इंदिरा,
विभिन्न भाषा–भाषी, पहाड़ व तराइयों के वासी,
अनेक धर्म के मानने वाले, लाचार हरिजनों तक़
भेद–भाव का लेश नहीं, सबको एकता में बाँधने वाली।
एक–सा जीवन उन्हीं के नाम
ऐसा अटल देश, भारत महान्
ईश–नियुक्त, सबकी मनभावन,
न भर सकेंगे किलकारियाँ उनके बिना।
सारा जहाँ हुआ शोकमग्न,
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प्रत्येक राष्ट्र–नेता, लिए मन में आक्रोश,
प्रत्येक राष्ट्र शोक में हाहाकार,
हाय, कि अकस्मात् दुर्भाग्य का पहाड़ टूटा।
मिजोवासी विशेष हेतु असीम व्यथा,
समझौता की किरण झलकी यही हमने बखाना,
हे प्रियतम नेता, जोरम की आशा,
हमें गवारा नहीं उनका यूँ अस्त हो जाना।
कोसों दूर के वासी, बेबस जोउवासी,
फूलों की तरह चाहती थीं वे उन्हें,
धारण किया जोउ वस्त्र धारीदार,
कितनी सुहाई थीं – आखों में समाहित है।
उनके जीवन का भले ही गया अंत,
उन्होंने सजाए उन्नति के कई पथ,
आजादी और एकता की भावनाएँ,
अमर रहेगा सबके अंतर्मन में।
हमारे देश की प्रशंसनीय,अमूल्य रत्न श्रीमती इंदिरा,
हार्दिक सत्कार उन्हें, बसती हैं अंतर्मन में हमारे,
उनके लहू की बूँदें किस कदर भूल सकेंगे हम
साथ बह गई वे भारतीयों के निमित्त।
तेरी याद में बिलखतीं, संतानें तेरी,
आत्मा तेरी निहार तो नहीं रही?
उस हिंसक़ क्रूर, राष्ट्र कलंक की
निंदा करते हम कि धिक्कार है उसे।
विभिन्न रिवाज़ शक्ल, भाषा और धर्म हैं अनेक
हमारे इस सुखद देश में उन्नति के पथ पर चलते,
सूखे पत्ते समान पूर्वज नेता झड़ भी जाएँ,
नए, कोमल पत्तों की छाया में आगे कदम बढ़ाएँ।।
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