उ तिरोत सिङ था नोंख्लाव का राजा
पीढ़ी दर पीढ़ी उसे याद करेगा
गले लगाया मौत को खुशी – खुशी
शहीद होकर जीवित है आज भी।
दरबार व प्रजा के आँखों का तारा
जीवन का सर्वस्व है उनकी प्रजा
बुद्धिमान, साहसी, सूझ–बूझ वाला वीर
दृढ़ प्रतिज्ञ था शालीन और गम्भीर।
दरबार में उसके डैविड स्कॉट था आया
आने का कारण उसने बताया
अभिलाषा जोड़ना कामरूप से सिल्हट
नोङख्लाव बने माध्यम हो जाओ सहमत।
ये न हो सकेगा साहब माफ करना
नोङख्लाव की रक्षा करना कर्तव्य मेरा
क्या होगा जो मिट्टी चली गई अगर
प्रजा का जीवन है निर्भर इस पर।
डैविड स्कॉट ने दिया आश्वासन पूरा
न होगा नुकसान नोङख्लाव को वादा
होगा ये सुख–समृद्धि से भरपूर
नोङख्लाव चमकेगा देश में जरूर।
उ हिन्नयेवत्रेप है ज़बान का पक्का
डैविड स्कॉट से उसकी यही अपेक्षा
राज दरबार की सलाह तिरोत ने ली
मंत्रियों ने भी दे दी अपनी सहमति।
आरंभ किया डैविड ने काम वहाँ
कर्तव्य उसने सबको समझाया
लोग हैं यहाँ तेज और भोले–भाले
नैतिक आचरण का सब ध्यान रखें।
भूल गए सिपाही डैविड की शिक्षा
युवतियों का सौंदर्य जब उन्होंने देखा
छेड़ा, लकड़ी बनती, जल भरती युवती
करतूतों से उनकी युवतियाँ सहम गईं।
हुआ मजदूर भी शिकार अत्याचार का
गुलामों का सा बर्ताव उसने पाया
रास्ता दिया क्या इसी दुर्दिन के लिए ?
कायर व दुर्बल नहीं हम, ये समझ लें।
रक्त खौल उठा राजा उ तिरोत सिङ का
स्कॉट ने निभाया न वादा अपना
सुरक्षित नोङख्लाव की दी थी जबान
किया न अपने वचन का सम्मान।
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काबू सिपाहियों पर न कर सका
छोड़ना होगा उन्हें गाँव हमारा
तिरोत के योद्धाओं ने उठाये हथियार
ठान ली उन्होंने अंग्रेजों की हार
कई खासी राजाओं ने की सहायता
करीबी मित्र था बोरमानिक राजा
बंदूक, तोप थी अंग्रेजों की शक्ति
तीर, कमान, तलवार में थे खासी माहिर।
बढ़ी अंग्रेजी सैनिकों की संख्या
लक्ष्य था उ तिरोत को पकड़ना
आया न वह किसी के हाथ कभी
लंबे समय तक युद्ध रहा जारी।
नोङख्लाव का व्यापार अंग्रेजों ने ठप किया
पर संघर्षों में भी तिरोत न झुका
मुश्किल हुआ अंग्रेजों का सामना जब
छिपकर वार करना आरंभ किया तब।
शुरू किया अंग्रेजों ने काम अपना
मिला उसके लिए एक युवा
सुलह में ही है तिरोत की भलाई
जाकर कह दो तुम उससे यह भाई।
ब्रिटिश शासन के आगे नहीं झुकना
तिरोत व दरबार का यह फैसला
शोषण बढ़ा अंग्रेज़ों का और भी
विचलित न हुआ नोङख्लाव कभी।
अंधकारमय हुआ जीवन तिरोत का
चाल बाज अंग्रेज़ों ने जब उसे पकड़ा
जीवन का अपना अंतिम समय उसने
बिताया ढाका के कैदखाने में।
ब्रिटिश ने बोला उनसे वहाँ
पा सकते हो पद फिर राजा का
रहेगा नोंख्लाव तुम्हारा ही
पालन बस करना आज्ञा हमारी।
क्या करूँगा सुख और सुविधा का
जब सुखी न होगी मेरी प्रजा
नहीं, मैं नहीं इतना स्वार्थी नहीं
कि अपने लिए बेच दूँ देश को ही।
नोङख्लाव का महान युवा राजा
बंदी रहकर मौत को स्वीकारा
गुलामी के साथ न चाहा राज–पाट
देश को बलिदान का पढ़ाया पाठ।
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