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त्रिपुरेश्वरी का त्रिपुरा
- सुश्री खुमतिया देबबर्मा
त्रिपुरेश्वरी का त्रिपुरा देवों को भी प्यारा है।
पूर्वोत्तर भारत का यह सुन्दर राज्य हमारा है।।
बांग्लादेश, मिजोरम, असम से लगा हुआ किनारा है।
छोटे–छोटे पर्वत शिखरों, नदी–नाले और ताल–पोखरों,
हरे–भरे वन और फूल प्रकृति ने रूप संवारा है।
इसकी गोदी में जमातिया, त्रिपुरी और अनेक जातियाँ,
घुलमिल कर रहती हैं।
कॉकबरक प्रमुख भाषा में जन की गाथा कहती हैं।
चली आ रही प्रथा पुरानी,
राज कर रहे राजा रानी,
राज महल अब भी है निशानी,
जिसे देख होती हैरानी
सभी तरफ है पानी–पानी
नौका चढ़ जाते सैलानी,
उदयपुर में बड़ा सरोवर,
लगती कैसी छटा मनोहर।
विविध संस्कृतियों का संगम,
संस्कृति झंकृत, लोक विहंगम,
लोक कण्ठ चंचल सूर सरिता,
कल–कल, छल–छल बहती कविता,
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परी लोक की कथा सुहानी,
सदा सुनाती दादी–नानी,
लोक नृत्य है छन्द प्रकृति का,
झूम रही हो जैसे लतिका,
तन–मन में स्पन्दन गतिका।
गोरिया, हाङराई, खारची पूजा मुख्य यहाँ का है त्यौहार
रिङनाई–रीसा पहनकर बालायें करती नृत्य हजार।
सचमुच तब मन को इतना भाता है,
जैसे धरती पर इन्द्रधनुष उतर आता है।
त्यौहारों पर बनी जो मिठाई,
खुशी मनाते बहन–भाई।
झूम–झूम करता आया है,
कृषक झूम की खेती।
चट्टानें हो या हो जंगल,
या हो बंजर रेती।
सांस–सांस में बाँस बसा है,
जड़े हैं हीरे मोती।
है जितना छोटा यह राज्य,
उतना भाता हमको आज।
पूर्वोत्तर भारत का यह सुन्दर राज्य हमारा है।
त्रिपुरेश्वरी का त्रिपुरा देवों को भी प्यारा है।।
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संपर्क सूत्र-
शोधार्थी, हिंदी विभाग,
पूर्वोत्तर पर्वतीय विश्वविद्यालय, शिलांग
मो. 8014108504
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