फूल
बहार बनकर खिलते फूल
रोतों को हंसाते
पतझड़ हो, दहकती गमीठंड
सिकुड़ती, हो कुहार बसंत की
पीछे हटना न मंजिल के राही
हंसकर जीना सिखाते फूल,
रंग–बिरंगी पंखुड़ियाँ
शोभा बनती बगियाँ की
जैसे भिन्न भाषा–प्रांत
शान बने प्यारे भारत की
रंग प्यार का बिखेरना सिखाते फूल
काँटों की राह पर खिलते
भेद नहीं, न कोई दुश्मन इनका
खुशियाँ लुटाकर खुद मुरझा जाते
ओंरों को खातिर जीना सिखाते फूल
रूठना न आता, प्रेम की बोली बोलते
सुख की छाया, हो दु:ख का पहाड़
खिलकर महकना न छोड़ते फूल
जीवन के हर मोड़ पर ...
हँसना–हँसाना सिखाते ये फूल।
संपर्क सूत्र-
जागीरोड (मोरी गाँव), असम
मो. 08822124434
मंच
झूठ और फरेब के इस मंच पर
क्यों लाया गया है मुझे ?
मुझे पात्र नहीं बनना है इस नाटक का
इन सब पात्रों से मुझे नफरत है।
नहीं चाहिए मुझे तुम्हारे ये पोशाक !
बनाने होते अगर मुझे पात्र
तो क्यों न तुम ऐसा मंच सजाते
जिसको विश्वास, सच्चाई तथा प्यार से
सुसज्जित किया गया हो ?
तुम्हारा यश आजकल कम हो गया है
तुम अच्छे निर्देशक नहीं रहे
पता है क्यों ?
लोग तुमसे घृणा करने लगे हैं
तुम्हारे इन नाटकों से ऊब चुके हैं
पता है क्यों ? कभी सोचा है वजह ?
मेरी मानो अपना मंच बदल डालो
इसको एक नये सिरे से सजाओ
इन्सानियत को इसका नायक बनाओ
और स्नेह को इसकी नायिका।
संपर्क सूत्र-
वांखै कोइजम लैकाई
इंफाल पूर्व – 795001, मणिपुर
मो. 09612905979
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